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जेजे एक्ट में किशोर की दोषसिद्धि को सेवाओं में नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं माना जाएगा : उच्च न्यायालय

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Prayagraj, 31 अक्टूबर (Udaipur Kiran) . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 19, जो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 24 के लगभग समान है, पर भरोसा करते हुए माना कि अधिनियम के तहत किशोर की दोषसिद्धि को सेवाओं में नियुक्ति के लिए अयोग्यता नहीं माना जाएगा.

हाईकोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 19 में यह प्रावधान है कि किसी अन्य कानून में किसी बात के होते हुए भी, कोई किशोर जिसने कोई अपराध किया है और जिसके साथ इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई है, उसे ऐसे कानून के तहत अपराध के लिए दोषसिद्धि से जुड़ी अयोग्यता, यदि कोई हो, नहीं मिलेगी.

चीफ जस्टिस अरुण भंसाली और जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की बेंच ने कहा कि अधिनियम की धारा 19(1) के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक ’गैर-बाधित खंड’ से शुरू होता है, जो किशोर के मामले में किसी अन्य कानून की प्रयोज्यता को बाहर करता है और स्पष्ट रूप से प्रावधान करता है कि एक किशोर जिसने कोई अपराध किया है और जिसके साथ अधिनियम के प्रावधानों के तहत निपटा गया है, उसे ऐसे कानून के तहत किसी अपराध के लिए दोषसिद्धि से जुड़ी अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा. अदालत ने कहा कि इसका अर्थ है कि यदि किसी किशोर को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए दोषी ठहराया भी जाता है, तो भी उसकी दोषसिद्धि को अयोग्यता नहीं माना जाएगा.

यह आदेश हाईकोर्ट ने पुण्डरीकाक्ष की याचिका पर दिया है. कर्मचारी ने विभाग द्वारा संचालित भर्ती अभियान, 2019 में पीजीटी पद हेतु आवेदन कर प्रतिभाग किया. सफल होने पर उन्हें जवाहर नवोदय विद्यालय, गौरीगंज, अमेठी द्वारा नियुक्ति पत्र जारी किया गया. दो माह पश्चात् नियुक्ति हेतु आवेदन करते समय आपराधिक इतिहास छिपाने के सम्बन्ध में उनके विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई तथा उनसे जवाब-तलब किया गया. विस्तृत जाँच के बाद, उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.

बर्खास्तगी के विरुद्ध, कर्मचारी ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, इलाहाबाद पीठ में अपील की, जहाँ उसका आवेदन स्वीकार कर लिया गया और विभाग को अवतार सिंह बनाम भारत संघ एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया गया.

इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी. न्यायालय ने कहा कि यद्यपि 2000 के अधिनियम को निरस्त कर दिया गया है, परन्तु 2015 के अधिनियम की धारा 111 में यह प्रावधान है कि 2000 के अधिनियम के तहत की गई कोई भी कार्रवाई 2015 के अधिनियम के संगत प्रावधानों के तहत की गई मानी जाएगी. यह देखते हुए कि अपराध 18 अप्रैल 2011 को किया गया था और एफआईआर भी 2015 अधिनियम के लागू होने से पहले 2011 में दर्ज की गई थी.

भारत संघ एवं अन्य बनाम रमेश बिश्नोई मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि कर्मचारी से किशोर के रूप में किए गए अपराध का खुलासा करने के लिए कहना निजता के अधिकार और प्रतिष्ठा के अधिकार का उल्लंघन है. न्यायालय ने कहा कि एक बार जब न्यायाधिकरण ने कर्मचारी की नाबालिगता के बारे में निष्कर्ष दर्ज कर लिया था, तो उसे नए सिरे से जांच का निर्देश नहीं देना चाहिए था. न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करते हुए, न्यायालय ने कर्मचारी को सभी परिणामी लाभों के साथ सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया.

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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