जयपुर, 31 मई . राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि राजस्व अदालतों और अपीलीय कोर्ट में प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं. इन अधिकारियों के पास न तो कानून की डिग्री होती है और ना ही इन्होंने प्रक्रियात्मक कानूनों व नियमों का अध्ययन किया होता है. जिसके चलते कई बार देखा गया है कि इन अदालतों में व्यावहारिक कानूनी प्रक्रिया का खुलेआम उल्लंघन किया जाता है. ऐसे में राज्य सरकार को नव नियुक्त और सेवारत प्रशासनिक अधिकारियों के लिए प्रशासनिक न्यायिक अकादमी का स्थापना की जानी चाहिए. जहां इन अधिकारियों को कानून का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाए. इसके साथ ही अदालत ने आदेश की कॉपी मुख्य सचिव और प्रमुख राजस्व सचिव सहित अन्य जिम्मेदार अफसरों को भेजी है. जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश राजस्व मामले में उमाकांत शर्मा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
अदालत ने कहा कि वर्तमान में न्यायिक अधिकारी न्यायिक अकादमियों में एक साल का प्रशिक्षण लेते हैं और विभिन्न कार्यशालाओं में शामिल होते हैं. फिर राजस्व अदालतों में तैनात प्रशासनिक अधिकारियों को इस तरह के प्रशिक्षण के लिए क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए. राजस्व अदालतों का कार्य अर्द्ध न्यायिक माना जाता है, लेकिन इनमें तैनात अधिकांश अधिकारी न तो कानूनी स्नातक हैं और ना ही उन्हें अदालती प्रक्रिया की पहचान है. अदालत ने कहा कि नव नियुक्त और सेवारत दोनों तरह के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने की जरूरत लंबे समय में महसूस की जा रही है. राज्य सरकार की ओर से अब तक इसकी उपेक्षा की गई है. जिससे राज्य के विकास और आम जनता को न्याय मिलने में विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं. अदालत ने कहा कि राजस्व अदालतें और अपीलीय कोर्ट की ओर से कई बार सिविल प्रक्रिया कानून के अनिवार्य प्रावधानों की पालना किए बिना फैसला देने में प्रक्रियात्मक गलतियां हो जाती हैं. क्योंकि उन्होंने न तो कभी कानून का अध्ययन किया और ना ही कानूनी प्रशिक्षण प्राप्त किया है.
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