–कोर्ट ने कहा, जब एनसीटीई ने किया है जरूरी तो हाल की भर्ती में इसे अर्हता में क्यों नहीं किया गया शामिल
प्रयागराज, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से हाल ही में राजकीय विद्यालयों में प्रवक्ता पदों की भर्ती में टीईटी को अनिवार्य न किए जाने पर जानकारी मांगी है। कोर्ट ने पूछा है कि जब एनसीटीई ने टीईटी अनिवार्य कर रखी है तो हाल की भर्ती में इसे क्यों नहीं शामिल किया गया।
अखिलेश व अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने यह सवाल पूछा है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 21 अगस्त की तिथि तय की है।
याचियों की ओर से अधिवक्ता तान्या पाण्डेय ने तर्क दिया कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग जीआईसी और जीजीआईसी में कक्षा छह से 10 तक के छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की भर्ती करने जा रहा है। इसके लिए उसने विज्ञापन जारी किया है। लेकिन, विज्ञापन में शिक्षकों की भर्ती अर्हता में टीईटी को शामिल नहीं किया है। जबकि एनसीटीई के 2010 के नोटिफिकेशन के अनुसार छह से आठ तक के छात्रों के लिए टीईटी अनिवार्य है। विज्ञापन छह से 10 तक पढ़ाने वाले शिक्षकों की भर्ती के लिए निकाला गया है। इसलिए टीईटी अनिवार्य है।
उधर, एनसीटीई के अधिवक्ता वैभव त्रिपाठी ने इस पर सहमति जताई। आयोग की ओर से अधिवक्ता पीके रघुवंशी ने कहा है कि आयोग केवल भर्ती के लिए आवश्यक प्रक्रिया पूरी कर रहा है। अर्हता तय करने का काम उत्तर प्रदेश सरकार का है। उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता राजीव गुप्ता ने जवाब देने के लिए कोर्ट से एक सप्ताह का वक्त मांगा। कोर्ट ने एक सप्ताह का समय देते हुए मामले की सुनवाई के लिए 21 अगस्त की तिथि तय कर दी है।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उनके पास विधिवत टीईटी प्रमाणपत्र है, जो कि एन.सी.टी.ई. द्वारा दिनांक 23 अगस्त 2010 की अधिसूचना के अनुसार कक्षा-6 से 8 में शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए निर्धारित अनिवार्य योग्यता है। सहायक अध्यापक, टी.जी.टी. ग्रेड परीक्षा, 2025 के पद पर चयन के लिए प्रतिवादी संख्या 5 द्वारा जारी किए गए विवादित विज्ञापन में, राज्य और प्रतिवादी संख्या 5 उक्त न्यूनतम योग्यता निर्धारित करने में विफल रहे हैं और इसलिए विवादित विज्ञापन कानून में टिकने योग्य नहीं है।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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