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बिहार में 'मल्लयुद्ध' शुरू... राहुल गांधी ने पलट दी बाजी! तेजस्वी हुए गायब, बीजेपी में भी हड़कंप?

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बिहार विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस अपनी सियासी चालों को लगातार बदल रही है। साढ़े तीन दशक से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस ने अपनी वापसी के लिए पहले 'सामाजिक न्याय' और फिर 'रोज़गार' जैसे मुद्दों पर दाँव खेला, लेकिन अब उसका पूरा ध्यान 'वोट चोरी' के मुद्दे पर केंद्रित हो गया है। इस बदलाव ने पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या इस एक मुद्दे पर अत्यधिक निर्भरता से बिहार के अहम मुद्दे कहीं पीछे तो नहीं छूट जाएंगे?

सामाजिक न्याय से कैंपेन की शुरुआत

कांग्रेस ने अपने चुनावी कैंपेन का आगाज़ सामाजिक न्याय के एजेंडे के साथ किया था। जनवरी में पटना में आयोजित 'संविधान रक्षा' कार्यक्रम में राहुल गांधी ने शिरकत की थी, जहाँ उन्होंने जातिगत जनगणना और दलित-पिछड़ों की भागीदारी का मुद्दा बुलंद किया था। इसके बाद उन्होंने पासी समाज से आने वाले जगलाल चौधरी की जयंती में हिस्सा लिया और दलित समाज के कई नेताओं को पार्टी से जोड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल और दशरथ माँझी के बेटे जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों को पार्टी में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा था।

राहुल गांधी ने लगातार 50% की आरक्षण सीमा हटाने की वकालत की और पसमांदा मुस्लिम महाज़ के नेता अली अनवर अंसारी को भी पार्टी में शामिल कराया। उन्होंने दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदायों की निजी कंपनियों और सरकारी पदों में भागीदारी का मुद्दा भी उठाया। बिहार प्रदेश कांग्रेस की कमान दलित नेता राजेश राम को सौंपी गई और सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया। यह सब कांग्रेस की सामाजिक न्याय की दिशा में एक सोची-समझी रणनीति थी, जिसका लक्ष्य अपने पुराने कोर वोटबैंक को फिर से जोड़ना था।

रोज़गार और पलायन पर पदयात्रा

सामाजिक न्याय के साथ-साथ कांग्रेस ने बिहार के युवाओं से जुड़े मुद्दों पर भी काम किया। कन्हैया कुमार की अगुवाई में 'नौकरी दो, पलायन रोको' नाम से एक पदयात्रा निकाली गई, जो पश्चिम चंपारण से शुरू होकर पटना में समाप्त हुई। इस यात्रा का उद्देश्य बेरोज़गारी और पलायन जैसे अहम मुद्दों पर सियासी माहौल बनाना था। कांग्रेस ने नीतीश कुमार सरकार को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश की, यह कहते हुए कि सरकार न तो समय पर नौकरियों के पद भर पा रही है और न ही परीक्षा के परिणाम जारी कर रही है, जिससे बिहार के लोग पढ़ाई, इलाज और कमाई के लिए पलायन करने को मजबूर हैं।

'वोट चोरी' पर केंद्रित हुई रणनीति

सामाजिक न्याय और रोज़गार जैसे मुद्दों पर काम करने के बाद, कांग्रेस ने अपनी रणनीति में एक बड़ा बदलाव किया। निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची की विशेष संशोधन प्रक्रिया (SIR) शुरू होते ही, कांग्रेस का पूरा ध्यान 'वोट चोरी' के मुद्दे पर केंद्रित हो गया। राहुल गांधी ने 17 दिनों में 20 से अधिक ज़िलों का दौरा कर 1300 किलोमीटर की 'वोटर अधिकार यात्रा' निकाली।

राहुल गांधी ने लगातार बीजेपी और चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने कर्नाटक और महाराष्ट्र के उदाहरण देते हुए दावा किया कि कैसे कांग्रेस के मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए। राहुल ने गुरुवार को भी इस मुद्दे पर एक प्रेजेंटेशन दिया, जिसमें उन्होंने अपने पास सभी सबूत होने का दावा किया।

क्या 'वोट चोरी' पर निर्भरता महंगी पड़ेगी?

'वोट चोरी' के मुद्दे पर राहुल गांधी का आक्रामक रुख बिहार चुनाव से जुड़ा हुआ है। पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि यह एक सही मुद्दा है, लेकिन कुछ को यह चिंता है कि इस पर अत्यधिक ध्यान देने से सामाजिक न्याय, रोज़गार और भ्रष्टाचार जैसे बिहार के अहम मुद्दे पीछे छूटते जा रहे हैं।

वहीं, प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार युवाओं को नौकरी और शिक्षा जैसे मुद्दे उठाकर अपनी सियासी बिसात बिछाने में लगे हैं, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। ऐसे में, कांग्रेस का केवल 'वोट चोरी' पर फोकस करना जोखिम भरा हो सकता है।

महागठबंधन के भीतर भी इस मुद्दे पर एक राय नहीं है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 'बिहार अधिकार यात्रा' शुरू करके रोज़गार, महिलाओं और किसानों जैसे मुद्दों को उठाया है। इससे साफ है कि तेजस्वी यह बखूबी समझते हैं कि केवल 'वोट चोरी' के नैरेटिव से नीतीश कुमार को मात देना मुश्किल है।

कांग्रेस के भीतर यह सवाल उठ रहा है कि क्या 'वोट चोरी' जैसा तकनीकी और जटिल मुद्दा चुनाव तक मतदाताओं के बीच अपना असर बनाए रख पाएगा? क्या आम जनता यह समझ पाएगी कि मतदाता सूची से नाम कटने का मतलब सरकारी योजनाओं से बाहर होना है? इन सवालों के जवाब ही तय करेंगे कि कांग्रेस की यह नई रणनीति उसे बिहार में सत्ता के करीब लाती है या फिर उसके हाथ से सारे मुद्दे फिसल जाते हैं।

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