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तालिबान ने खोला पाकिस्तानी सेना का 20 साल का कच्चा चिट्ठा, सबूत के साथ बताया- TTP का कैसे हुआ जन्म, कौन जिम्मेदार

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काबुल: पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान के बीच तुर्की में दो दिन चली शांति वार्ता असफल हो गई है। फिलहाल दोनों पक्षों ने अगले दौर की वार्ता में नहीं जाने का फैसला लिया है। दोनों पक्षों में गतिरोध की बड़ी वजह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है। पाकिस्तान की ओर से कहा जा रहा है कि टीटीपी को अफगानिस्तान में पनाह मिल रही है, जो उसके सैनिकों पर हमले कर रहा है। पाकिस्तान के आरोपों पर अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने अपनी सरकार का पक्ष रखते हुए पाकिस्तान सरकार और सेना को घेरा है। तालिबान ने सिलसिलेवार ढंग से सबूत देते हुए ये साबित करने की कोशिश की है कि टीटीपी की ताकत बढ़ने का उनके सत्ता में आने से कोई संबंध नहीं है। इसके उलट टीटीपी को पैदा करने के पीछे खुद पाक आर्मी है।

मुजाहिद की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि तुर्की में हुई वार्ता के घटनाक्रम के बीच हम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से जुड़ी कई बातों को साफ करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान में कुछ सैन्य तत्व अफगानिस्तान में मजबूत सरकार को अपने हितों के खिलाफ मानते हैं। वर्षों से उन्होंने अफगानिस्तान की अस्थिरता का फायदा उठाया है। एक बार फिर वे टीटीपी पर मनगढ़ंत बहाने बनाकर तनाव पैदा करने पर आमादा हैं।'

अफगानिस्तान पर लगे आरोप झूठेमुजाहिद ने आगे कहा, 'अफगानिस्तान पर झूठे आरोप लगाते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने यह धारणा पेश की गई है कि पाकिस्तान में अस्थिरता और टीटीपी का उदय अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आने के साथ शुरू हुआ। हकीकत यह है कि टीटीपी का उदय 2002 में हुआ था, जो पाकिस्तानी सेना की गलत नीतियों का परिणाम है।'

तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि हम पाकिस्तानी सेना और पश्तून जनजातियों के बीच अतीत में हुए टकरावों को याद दिलाना चाहते हैं, जिससे पता चलता है कि टीटीपी के मुद्दे से तालिबान के सरकार में आने से कोई लेना-देना नहीं है। सच्चाई यह है कि टीटीपी का उदय 2002 में पाकिस्तानी सेना और अमेरिका की ओर से वजीरिस्तान में ड्रोन हमले और हवाई बमबारी के जवाब में हुआ।

पहले से जारी हैं TTP के हमलेतालिबान ने स्पष्टतौर पर कहा है कि मार्च 2002 में पाकिस्तानी सेना ने दक्षिण वजीरिस्तान, उत्तरी वजीरिस्तान और ओरकजई में टीटीपी के खिलाफ अपना पहला अभियान ऑपरेशन अल-मिजान शुरू किया। इसके बाद भी पाक आर्मी का लोगों पर अत्याचार जारी रहा। वहीं टीटीपी भी पाकिस्तानी सेना और सरकार को निशाना बनाता रहा। इसमें तालिबान तो कहीं भी शामिल नहीं था।

मुजाहिद ने कहा कि दस्तावेजी तथ्यों से पता चलता है कि तालिबान के आने से बहुत पहले ही पाकिस्तानी सेना पश्तून कबीलों और टीटीपी से लड़ रही थी। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि आतंकवाद के खिलाफ तथाकथित लड़ाई में 80,000-90,000 सैन्यकर्मी और नागरिक मारे गए। इससे जाहिर होता है कि यह समस्या पाकिस्तान की अपनी आंतरिक समस्या है, ना कि तालिबान इसकी वजह है।


तालिबान ने दिए सबूततालिबान प्रवक्ता ने अगस्त 2007 में टीटीपी के हमले और उनके 300 पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ने और 2008 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हमले का उदाहरण दिया है। इसके बाद 2009, 2010 और 2011 के हमलों का जिक्र भी तालिबान ने किया है, जब टीटीपी ने पाक सेना को भारी नुकसान किया। ये सब बताते हुए तालिबान ने बताया है कि टीटीपी की समस्या उनकी वजह से नहीं है।
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