नई दिल्ली : भारत के आसियान देशों के साथ बेहतरीन संबंध हैं। ये देश चीन की साम्राज्यवादी नीतियों से डरे हुए हैं। दरअसल, चीन इन देशों के बाजार पर अपना दबदबा कायम कर रहा है। इससे आसियान देशों की कमर टूट रही है। भारत अरसे से इस बात को प्रमुखता से उठा रहा है कि आसियान देश सस्ते चीनी कच्चे माल और बिचौलियों के उत्पादों के डंपिंग ग्राउंड बन रहे हैं, जो व्यापार समझौते की वजह से आसानी से भारत पहुंच जाते हैं। मलेशिया में आयोजित 23वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंस से संबोधित करते हुए कहा है कि भारत और आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन) ने वर्ष 2026 को समुद्री सहयोग वर्ष के तौर पर मनाने का फैसला किया है।
हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी टेंशन की बात
हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामक गतिविधियों और इस बारे में अमेरिका की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए भारतीय पीएम की उक्त घोषणा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके तहत इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, विएतनाम, ब्रुनेई, लाओस, सिंगापुर और पूर्वी तिमोर के साथ भारत समुद्र से जुड़े हर क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाएगा। पीएम मोदी ने कहा है कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति में आसियान की केंद्रीय भूमिका है। हम सिर्फ भूगोल साझा नहीं करते हैं बल्कि गहरे ऐतिहासिक संबंधों और साझे मूल्यों के डोर से भी जुड़े हुए हैं। हम न केवल व्यापारिक साझेदार हैं, बल्कि सांस्कृतिक साझेदार भी हैं।' माना जा रहा है कि हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत उक्त घोषणा के तहत आसियान देशों के साथ समुद्री सुरक्षा, व्यापार मार्गों की सुरक्षा और आर्थिक विकास को मजबूत करने के लिए कदम उठाएगा।
आसियान में चीन के दबदबे से भारत को टेंशन
मिंट पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, आसियान क्षेत्र में चीन की व्यापक उपस्थिति के कारण भारतीय निर्यातकों के लिए और अधिक ठोस रास्ता बनाना आसान नहीं होगा। जब अमेरिकी टैरिफ का असर पड़ा, तो चीन ने अपने निर्यात में भारी गिरावट को रोकने के लिए आसियान देशों पर भरोसा किया। अप्रैल और सितंबर के बीच आसियान देशों को चीन का निर्यात औसतन 57 ट्रिलियन डॉलर रहा—जो साल दर साल 17.3% की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, अमेरिका को निर्यात सालाना आधार पर 25.5% घटकर औसतन 34 ट्रिलियन डॉलर प्रति माह रह गया।
आसियान देश अमेरिका के चौथे सबसे बड़े कारोबारी पार्टनर
आसियान में मूल रूप से 10 देश हैं, जो ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं। इसमें 11वां सदस्य पूर्वी तिमोर भी है। ये देश सामूहिक रूप से अमेरिका के चौथे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं और कुल मिलाकर 2.9 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के सकल घरेलू उत्पाद और 647 मिलियन लोगों की आबादी वाले बाजार का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीन को इसी बात का रंज है। वह इन देशों में अपना दबदबा बनाना चाहता है और अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ना चाहता है।
चीन आसियान देशों में क्या कर रहा है
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी नीतियों के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को लगातार गहरा किया है। भारत अक्सर यह मसला उठाता रहा है कि चीन अपने सस्ते कच्चे माल आसियान देशों में भर रहा है। यही माल फिर किसी आसियान देश के जरिये भारत पहुंच जाते हैं। ऐसा ट्रेड एग्रीमेंट की वजह से होता है। इससे आसियान देशों का बाजार भी टूट रहा है।
भौगोलिक करीबी होने के नाते चाइनीज माल ज्यादा
आसियान देशों का झुकाव चीन की ओर होता है। सिंगापुर के ISEAS-यूसुफ इशाक संस्थान द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि कई दक्षिण-पूर्व एशियाई जनमत नेता वाशिंगटन की तुलना में बीजिंग के साथ अधिक निकटता से जुड़ेंगे। हालांकि चीन निर्यात विविधीकरण का सबक देता है, लेकिन आसियान में जगह बनाने के लिए चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी।
भारत को अलग-अलग प्रस्तावों का करना पड़ा सामना
भारत को इस व्यापार समझौते से लाभ न मिलने का मुख्य कारण इसका असफल प्रयोग है। एआईटीजीए के तहत, भारत ने 74.2% टैरिफ लाइनों (उत्पादों की सूची) पर टैरिफ हटाने की पेशकश की थी, जबकि अतिरिक्त 14.2% टैरिफ लाइनों पर टैरिफ में कमी पर सहमति बनी थी। दूसरी ओर, जनवरी 2024 में ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, भारत को अलग-अलग प्रस्तावों का सामना करना पड़ा, जिसमें इंडोनेशिया सबसे कम उदार था, जिसने केवल 50.1%, वियतनाम ने 69.7% और थाईलैंड ने 75.6% टैरिफ हटाने की पेशकश की।
भारत को फ्री ट्रेड का फायदा बेहद कम
सिंगापुर, मलेशिया जैसे प्रमुख देश पहले से ही अपने वैश्विक आयात के एक बड़े हिस्से को निम्न-से-शून्य सर्वाधिक मनपसंद राष्ट्र (MFN) शुल्क के अंतर्गत अनुमति दे रहे थे। यह एक टैरिफ दर है जो एक देश अपने सभी व्यापारिक साझेदारों पर समान रूप से लागू करता है। इसका मतलब यह हुआ कि एफटीए के कारण भारत को बहुत कम प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला क्योंकि ज्यादातर आयात शून्य या कम एमएफएन शुल्कों पर होते हैं। अमेरिकी नीतियों और निर्यात विविधीकरण की जरूरत को देखते हुए अब आसियान के साथ व्यापार समझौते पर पहले से कहीं ज्यादा पुनर्विचार करने की जरूरत है।
हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी टेंशन की बात
हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामक गतिविधियों और इस बारे में अमेरिका की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए भारतीय पीएम की उक्त घोषणा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके तहत इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, विएतनाम, ब्रुनेई, लाओस, सिंगापुर और पूर्वी तिमोर के साथ भारत समुद्र से जुड़े हर क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ाएगा। पीएम मोदी ने कहा है कि भारत की एक्ट ईस्ट नीति में आसियान की केंद्रीय भूमिका है। हम सिर्फ भूगोल साझा नहीं करते हैं बल्कि गहरे ऐतिहासिक संबंधों और साझे मूल्यों के डोर से भी जुड़े हुए हैं। हम न केवल व्यापारिक साझेदार हैं, बल्कि सांस्कृतिक साझेदार भी हैं।' माना जा रहा है कि हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच भारत उक्त घोषणा के तहत आसियान देशों के साथ समुद्री सुरक्षा, व्यापार मार्गों की सुरक्षा और आर्थिक विकास को मजबूत करने के लिए कदम उठाएगा।
My remarks during the ASEAN-India Summit, which is being held in Malaysia. https://t.co/87TT0RKY8x
— Narendra Modi (@narendramodi) October 26, 2025
आसियान में चीन के दबदबे से भारत को टेंशन
मिंट पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, आसियान क्षेत्र में चीन की व्यापक उपस्थिति के कारण भारतीय निर्यातकों के लिए और अधिक ठोस रास्ता बनाना आसान नहीं होगा। जब अमेरिकी टैरिफ का असर पड़ा, तो चीन ने अपने निर्यात में भारी गिरावट को रोकने के लिए आसियान देशों पर भरोसा किया। अप्रैल और सितंबर के बीच आसियान देशों को चीन का निर्यात औसतन 57 ट्रिलियन डॉलर रहा—जो साल दर साल 17.3% की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, अमेरिका को निर्यात सालाना आधार पर 25.5% घटकर औसतन 34 ट्रिलियन डॉलर प्रति माह रह गया।
आसियान देश अमेरिका के चौथे सबसे बड़े कारोबारी पार्टनर
आसियान में मूल रूप से 10 देश हैं, जो ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम हैं। इसमें 11वां सदस्य पूर्वी तिमोर भी है। ये देश सामूहिक रूप से अमेरिका के चौथे सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं और कुल मिलाकर 2.9 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के सकल घरेलू उत्पाद और 647 मिलियन लोगों की आबादी वाले बाजार का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीन को इसी बात का रंज है। वह इन देशों में अपना दबदबा बनाना चाहता है और अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ना चाहता है।
चीन आसियान देशों में क्या कर रहा है
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी नीतियों के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को लगातार गहरा किया है। भारत अक्सर यह मसला उठाता रहा है कि चीन अपने सस्ते कच्चे माल आसियान देशों में भर रहा है। यही माल फिर किसी आसियान देश के जरिये भारत पहुंच जाते हैं। ऐसा ट्रेड एग्रीमेंट की वजह से होता है। इससे आसियान देशों का बाजार भी टूट रहा है।
भौगोलिक करीबी होने के नाते चाइनीज माल ज्यादा
आसियान देशों का झुकाव चीन की ओर होता है। सिंगापुर के ISEAS-यूसुफ इशाक संस्थान द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि कई दक्षिण-पूर्व एशियाई जनमत नेता वाशिंगटन की तुलना में बीजिंग के साथ अधिक निकटता से जुड़ेंगे। हालांकि चीन निर्यात विविधीकरण का सबक देता है, लेकिन आसियान में जगह बनाने के लिए चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी।
भारत को अलग-अलग प्रस्तावों का करना पड़ा सामना
भारत को इस व्यापार समझौते से लाभ न मिलने का मुख्य कारण इसका असफल प्रयोग है। एआईटीजीए के तहत, भारत ने 74.2% टैरिफ लाइनों (उत्पादों की सूची) पर टैरिफ हटाने की पेशकश की थी, जबकि अतिरिक्त 14.2% टैरिफ लाइनों पर टैरिफ में कमी पर सहमति बनी थी। दूसरी ओर, जनवरी 2024 में ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) द्वारा किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, भारत को अलग-अलग प्रस्तावों का सामना करना पड़ा, जिसमें इंडोनेशिया सबसे कम उदार था, जिसने केवल 50.1%, वियतनाम ने 69.7% और थाईलैंड ने 75.6% टैरिफ हटाने की पेशकश की।
भारत को फ्री ट्रेड का फायदा बेहद कम
सिंगापुर, मलेशिया जैसे प्रमुख देश पहले से ही अपने वैश्विक आयात के एक बड़े हिस्से को निम्न-से-शून्य सर्वाधिक मनपसंद राष्ट्र (MFN) शुल्क के अंतर्गत अनुमति दे रहे थे। यह एक टैरिफ दर है जो एक देश अपने सभी व्यापारिक साझेदारों पर समान रूप से लागू करता है। इसका मतलब यह हुआ कि एफटीए के कारण भारत को बहुत कम प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला क्योंकि ज्यादातर आयात शून्य या कम एमएफएन शुल्कों पर होते हैं। अमेरिकी नीतियों और निर्यात विविधीकरण की जरूरत को देखते हुए अब आसियान के साथ व्यापार समझौते पर पहले से कहीं ज्यादा पुनर्विचार करने की जरूरत है।
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