नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को सीनियर एडवोकेट का पद देने के लिए नए नियम जारी किए हैं। इन नियमों का मकसद इस प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना और जवाबदेही तय करना है। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, ये नए नियम पुराने सिस्टम को बदलकर एक बेहतर और लोकतांत्रिक तरीका अपनाएंगे। जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने सभी हाई कोर्ट को निर्देश दिया है कि वे अगले चार महीनों में अपने नियमों में बदलाव करें। ये बदलाव सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार होने चाहिए। कोर्ट ने मौजूदा प्रक्रिया की समीक्षा करने के बाद ये फैसला लिया है, क्योंकि कोर्ट को लगा कि इसमें सुधार की जरूरत है। मार्किंग सिस्टम खत्मकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट के पद के लिए पहले से चले आ रहे मार्किंग सिस्टम को भी खत्म कर दिया है। नई प्रक्रिया के अनुसार, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की फुल कोर्ट ही सीनियर एडवोकेट के पद पर नियुक्ति का अंतिम फैसला करेगी, जो वकील योग्य पाए जाएंगे, उनके आवेदन और जरूरी कागजात फुल कोर्ट के सामने रखे जाएंगे। फिर फुल कोर्ट ही इस पर विचार करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसला करते समय सभी की सहमति होनी चाहिए। लेकिन अगर सहमति नहीं बन पाती है, तो वोटिंग के जरिए फैसला किया जाएगा। वोटिंग होगी या नहीं, ये हाई कोर्ट तय करेंगेसुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि कुछ मामलों में गुप्त मतदान (secret ballots) जरूरी है या नहीं, ये हाई कोर्ट ही तय करेंगे। ये फैसला हर मामले की अलग-अलग परिस्थितियों को देखकर किया जाएगा। एक और फैसले में कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट के पद के लिए वकालत में 10 साल के अनुभव की शर्त को बरकरार रखा है। यानी, सीनियर एडवोकेट बनने के लिए वकील को कम से कम 10 साल तक वकालत करनी होगी।कोर्ट ने ये भी कहा है कि वकील सीनियर एडवोकेट के पद के लिए आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने का मतलब होगा कि वकील इस पद के लिए अपनी सहमति दे रहा है। हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि फुल कोर्ट किसी वकील को बिना आवेदन के भी सीनियर एडवोकेट का पद दे सकती है, अगर वो वकील सभी जरूरी शर्तें पूरी करता है। कोई जज सिफारिश नहीं करेगासुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि कोई भी जज सीनियर एडवोकेट के पद के लिए किसी वकील का नाम आगे नहीं बढ़ाएगा। कोर्ट ने ये फैसला इसलिए लिया है ताकि प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे।ये फैसला 20 मार्च को एक मामले की सुनवाई के दौरान आया। ये मामला एक अपहरण के दोषी की सजा कम करने की याचिका से जुड़ा था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि कुछ वकील झूठे हलफनामे (affidavits) दाखिल कर रहे हैं और तथ्यों को छुपा रहे हैं। इस मामले में सीनियर एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा के आचरण पर भी सवाल उठे थे, जिसके बाद कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट के पद की प्रक्रिया में सुधार करने का फैसला किया। 2017 का फैसला और सुधारसीनियर एडवोकेट के पद के लिए प्रक्रिया 2017 में इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हुई थी। ये फैसला सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह की याचिका पर आया था, जिसमें उन्होंने पद की प्रक्रिया में ज्यादा पारदर्शिता लाने की मांग की थी। इसके बाद से ही कई सुधारों की मांग उठती रही है। कम से कम चार हाई कोर्ट ने प्रक्रिया में बदलाव के लिए सुझाव दिए हैं।कोर्ट ने ये भी कहा है कि पद की प्रक्रिया हर साल होनी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि जब तक हाई कोर्ट नए नियमों के अनुसार अपने नियम नहीं बना लेते, तब तक कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी। इंदिरा जयसिंह मामले में पहले के फैसलों के आधार पर मौजूदा प्रक्रिया जारी रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना कि उसे अपने नियमों और दिशानिर्देशों में भी बदलाव करने होंगे, ताकि पूरे सिस्टम में एकरूपता बनी रहे। क्या होता है सीनियर एडवोकेटसीनियर एडवोकेट एक सम्मानजनक पद होता है जो वकीलों को उनके कानूनी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इन नए नियमों से इस पद की गरिमा और बढ़ेगी और ये सुनिश्चित होगा कि ये पद सिर्फ योग्य वकीलों को ही मिले। कोर्ट का मानना है कि इन सुधारों से न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी।
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