नई दिल्ली: इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई ने बीते दिनों एक पॉडकास्ट में भारत की आर्थिक नीति की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां सरकार टैक्सपेयर्स के पैसे का इस्तेमाल सरकारी कंपनियों (पीएसयू) को चलाने के लिए करती है। ये सरकारी कंपनियां सीधे उन्हीं टैक्सपेयर्स से प्रतिस्पर्धा करती हैं। पई ने इसे भारत की आर्थिक व्यवस्था में बड़ी कमी बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को इनोवेशन पर ज्यादा खर्च करना चाहिए। निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना चाहिए। इसके बजाय कि वह केवल सरकारी कंपनियों को ही सहारा दे।
मोहनदास पई ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, 'यह इकलौता देश है जहां सरकार करदाताओं का पैसा लेती है और उसे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को देती है ताकि वे करदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें। क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं?' उन्होंने भारत की तुलना अमेरिका से की। पई ने NASA में अपने अनुभव को याद किया। वहां उन्हें बताया गया था, 'हम करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल करदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए नहीं करेंगे। हम इसका इस्तेमाल ज्यादा जोखिम वाली ब्लू-स्काय टेक्नोलॉजी को फंड देने के लिए करते हैं।'
चीन ने किया कमाल, हम रह गए पीछे
पई ने बताया कि भारत में इनोवेशन पर बहुत कम खर्च होता है। उन्होंने कहा, 'इनोवेशन पर खर्च? कुछ नहीं।' उन्होंने यह भी कहा कि इसका ज्यादातर पैसा DRDO और NAL जैसी सरकारी प्रयोगशालाओं को जाता है। पई ने इन संस्थानों के प्रदर्शन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'हम 20 साल में एक जेट इंजन नहीं बना पाए। चीन बोइंग के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। हमने वह पैसा टाटा मोटर्स या L&T को क्यों नहीं दिया? वे इसे बना लेते।'
AI में बनना चाहते हैं महारथी तो यहां क्लिक करें मोहनदास पई ने साफ किया कि वह पीएसयू के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'मैं चाहता हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन करे। लेकिन, केवल उन्हें ही सहारा न दें क्योंकि आप सुरक्षित महसूस करते हैं। यह देश हम सभी का है जिसमें निजी उद्यम भी शामिल हैं।' उनका मानना है कि निजी कंपनियों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।
SBI चेयरमैन की सैलरी जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर जितनीपई ने गलत प्रोत्साहन की ओर भी इशारा किया। उन्होंने उदाहरण दिया, 'भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के चेयरमैन 30,000 करोड़ रुपये का प्रबंधन करते हैं। लेकिन, साल में 45 लाख रुपये कमाते हैं। बेंगलुरु में एक जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर पांच साल में उतना कमा लेता है।' पई के अनुसार, इस समस्या की जड़ जवाबदेही के डर और राजनीतिक सुरक्षा की संस्कृति में है। इसी वजह से अक्षम संस्थान बने रहते हैं।
उन्होंने कहा, 'प्रौद्योगिकी हम सभी की है। इसे उद्योग को दें। सभी को निर्माण करने दें।' पई का मानना है कि सरकार को अपनी पकड़ ढीली करनी चाहिए। उसे निजी क्षेत्र को इनोवेशन और विकास में भाग लेने देना चाहिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।
मोहनदास पई ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, 'यह इकलौता देश है जहां सरकार करदाताओं का पैसा लेती है और उसे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को देती है ताकि वे करदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें। क्या आप इस पर विश्वास कर सकते हैं?' उन्होंने भारत की तुलना अमेरिका से की। पई ने NASA में अपने अनुभव को याद किया। वहां उन्हें बताया गया था, 'हम करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल करदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए नहीं करेंगे। हम इसका इस्तेमाल ज्यादा जोखिम वाली ब्लू-स्काय टेक्नोलॉजी को फंड देने के लिए करते हैं।'
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पई ने बताया कि भारत में इनोवेशन पर बहुत कम खर्च होता है। उन्होंने कहा, 'इनोवेशन पर खर्च? कुछ नहीं।' उन्होंने यह भी कहा कि इसका ज्यादातर पैसा DRDO और NAL जैसी सरकारी प्रयोगशालाओं को जाता है। पई ने इन संस्थानों के प्रदर्शन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'हम 20 साल में एक जेट इंजन नहीं बना पाए। चीन बोइंग के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। हमने वह पैसा टाटा मोटर्स या L&T को क्यों नहीं दिया? वे इसे बना लेते।'
AI में बनना चाहते हैं महारथी तो यहां क्लिक करें मोहनदास पई ने साफ किया कि वह पीएसयू के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'मैं चाहता हूं कि सार्वजनिक क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन करे। लेकिन, केवल उन्हें ही सहारा न दें क्योंकि आप सुरक्षित महसूस करते हैं। यह देश हम सभी का है जिसमें निजी उद्यम भी शामिल हैं।' उनका मानना है कि निजी कंपनियों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए।
SBI चेयरमैन की सैलरी जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर जितनीपई ने गलत प्रोत्साहन की ओर भी इशारा किया। उन्होंने उदाहरण दिया, 'भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के चेयरमैन 30,000 करोड़ रुपये का प्रबंधन करते हैं। लेकिन, साल में 45 लाख रुपये कमाते हैं। बेंगलुरु में एक जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर पांच साल में उतना कमा लेता है।' पई के अनुसार, इस समस्या की जड़ जवाबदेही के डर और राजनीतिक सुरक्षा की संस्कृति में है। इसी वजह से अक्षम संस्थान बने रहते हैं।
उन्होंने कहा, 'प्रौद्योगिकी हम सभी की है। इसे उद्योग को दें। सभी को निर्माण करने दें।' पई का मानना है कि सरकार को अपनी पकड़ ढीली करनी चाहिए। उसे निजी क्षेत्र को इनोवेशन और विकास में भाग लेने देना चाहिए। इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।
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