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देश की पहली महिला डॉक्टर मुत्तुलक्ष्मी के संघर्ष की कहानी

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तमिलनाडु की रियासत पुदुकोट्टे में 30 जुलाई, 1886 को मुत्तुलक्ष्मी का जन्म हुआ था। पिता महाराजा कॉलेज के प्राचार्य थे। उन दिनों लड़कियों के लिए पाठशाला जाना आश्चर्य की बात थी। पुदुकोट्टे के दीवान ने लड़कियों की शिक्षा के लिए प्राथमिक पाठशाला की स्थापना करवाई। मुत्तुलक्ष्मी परदेवाली गाड़ी में बैठकर पाठशाला जाती थीं। पिता पढ़ाई का महत्व समझते थे, इसलिए वह बेटी को नियमित रूप से पढ़ने भेजा करते।



मुत्तुलक्ष्मी ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। उन दिनों 10% विद्यार्थी ही मैट्रिक पास हो पाते थे। उनमें मुत्तुलक्ष्मी अकेली लड़की थीं। इस होनहार छात्रा को देखकर वर्ष 1907 में पुदुकोट्टे के महाराजा ने मद्रास मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलाने के लिए जी-जान लगा दी। वर्ष 1912 में मुत्तुलक्ष्मी डॉक्टर बन गईं।



किसी भारतीय विश्वविद्यालय से चिकित्सा की परीक्षा पास करने वाली वह पहली महिला थीं। उनकी पहली नियुक्ति मद्रास में इग्मोर के महिला एवं बालरोग अस्पताल में सर्जन के रूप में हुई। क्रांतिकारियों के सपंर्क में आने से उनके अंदर देश सेवा की भावना विकसित हुई। वह विधान परिषद की उपाध्यक्ष बनने वाली दुनिया की पहली महिला थीं। वर्ष 1929 में



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