नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच अब इस कानूनी मसले पर विचार करेगा कि क्या हाई कोर्ट वैसे अग्रिम जमानत की अर्जी पर सीधे विचार कर सकता है जिसमें मामला पहले सेशन कोर्ट न गया हो और अग्रिम जमानत की अर्जी सीधे हाई कोर्ट में दायर किया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर कर दिया कि क्या हाई कोर्ट बिना पहले सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाए सीधे अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की याचिकाओं पर विचार कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया कि इस मामले को तीन जजों की बेंच के सामने रखा जाए। सितंबर में वर्तमान बेंच ने मोहम्मद रसाल सी बनाम केरल राज्य मामले में इस मुद्दे पर विचार करना शुरू किया था, जब उसने केरल हाई कोर्ट द्वारा सीधे अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनने की प्रथा पर असहमति जताई थी।
एक जैसे अधिकार देती है सीआरपीसी
अदालत ने यह राय व्यक्त की थी कि सीआरपीसी की धारा 438 (जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 है) हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट को समान अधिकार देती है, फिर भी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन सामान्यतः पहले सेशन कोर्ट में दायर किया जाना चाहिए, और सीधे हाई कोर्ट का सहारा केवल असाधारण मामलों में लिया जाना चाहिए।
पिछले महीने वकील ने पेश की थी रिपोर्ट
इस दौरान अदालत ने सीनियर वकील सिद्धार्थ लूथरा को कोर्ट की सहायता के लिए एमिकस क्यूरी (amicus curiae) नियुक्त किया था। पिछले महीने लूथरा ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने यह राय दी कि हाई कोर्ट को केवल चार असाधारण परिस्थितियों में ही सीधे अग्रिम जमानत याचिकाएं सुननी चाहिए। बुधवार को लूथरा ने सुझाव दिया कि यह मामला तीन जजों की बेंच को भेजा जाए। इसके बाद मामले को तीन जजों को भेजा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया कि इस मामले को तीन जजों की बेंच के सामने रखा जाए। सितंबर में वर्तमान बेंच ने मोहम्मद रसाल सी बनाम केरल राज्य मामले में इस मुद्दे पर विचार करना शुरू किया था, जब उसने केरल हाई कोर्ट द्वारा सीधे अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनने की प्रथा पर असहमति जताई थी।
एक जैसे अधिकार देती है सीआरपीसी
अदालत ने यह राय व्यक्त की थी कि सीआरपीसी की धारा 438 (जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 है) हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट को समान अधिकार देती है, फिर भी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन सामान्यतः पहले सेशन कोर्ट में दायर किया जाना चाहिए, और सीधे हाई कोर्ट का सहारा केवल असाधारण मामलों में लिया जाना चाहिए।
पिछले महीने वकील ने पेश की थी रिपोर्ट
इस दौरान अदालत ने सीनियर वकील सिद्धार्थ लूथरा को कोर्ट की सहायता के लिए एमिकस क्यूरी (amicus curiae) नियुक्त किया था। पिछले महीने लूथरा ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने यह राय दी कि हाई कोर्ट को केवल चार असाधारण परिस्थितियों में ही सीधे अग्रिम जमानत याचिकाएं सुननी चाहिए। बुधवार को लूथरा ने सुझाव दिया कि यह मामला तीन जजों की बेंच को भेजा जाए। इसके बाद मामले को तीन जजों को भेजा गया।
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