धर्मेंद्र और उनकी पॉप्युलैरिटी फिल्मी दुनिया के फैन्स के लिए कोई नई बात नहीं। इस दिग्गज एक्टर ने ज़ीरो से अपनी शुरुआत की और फिल्मी दुनिया की बुलंदियों को छुआ है। हालांकि, उन्हें भी अफसोस इसी बात का है कि उनकी लगातार कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें कभी 'बेस्ट एक्टर' का अवॉर्ड नहीं मिला।
धर्मेंद्र ने अपने 65 साल के करियर में कई ब्लॉकबस्टर फिल्में की जिसपर उन्हें क्रिटिक्स से भर-भरकर तारीफें मिलीं। एक एक्टर के रूप में उनका ये सफर जहां शानदार है वहीं एक आह भी है। अपने शानदार दौर में बॉलीवुड के 'ही-मैन' एक्टिंग की दुनिया में अपने सदाबहार रोमांटिक और कॉमेडी जैसे रोल सभी तरह के रोल निभाए।
300 से ज्यादा फिल्में, नहीं मिला बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड
बता दें कि धर्मेंद्र का करियर 1960 में शुरू हुआ था। उन्होंने फिल्म 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' में लीड रोल किया था और यह उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें उन्हें मात्र 51 रुपये मिले थे। वहीं 'गरम धरम' के नाम से मशहूर धर्मेंद्र 60 के दशक के अंत तक स्टार बन चुके थे। वहीं 300 से ज्यादा फिल्में करने के बावजूद उन्हें अपने करियर की शुरुआत में बेस्ट टैलेंट के लिए सिर्फ एक फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला और काफी समय बाद उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। धर्मंद्र की फिल्मों में 'फूल और पत्थर', 'शोले', 'प्रतिज्ञा', 'सत्यकाम', 'मेरा गांव मेरा देश' और 'चुपके चुपके' जैसी हिट फिल्में शामिल थीं।
'धूल भरी ट्रॉफियों' से ज्यादा अहमियत
धर्मेंद्र ने कई बार पॉप्युलर फिल्म अवॉर्ड का बेस्ट एक्टर अवॉर्ड न मिलने की बात कही है। उन्होंने ये भी कहा था कि शुरुआत में यह बात उन्हें परेशान करती थीं, लेकिन अब वह अपने दर्शकों के अपार प्यार को 'धूल भरी ट्रॉफियों' से ज्यादा अहमियत देते हैं।
'हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता'
दिलीप कुमार और सायरा बानो ने साल 1997 में 42वें फिल्मफेयर अवॉर्ड में धर्मेंद्र को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया। इस मौके पर एक्टर ने कहा था, 'मुझे काम करते हुए 37 साल हो गए हैं। हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता था, इस उम्मीद में कि मुझे कोई अवॉर्ड मिलेगा लेकिन मुझे कभी अवॉर्ड नहीं मिला।'
'लेकिन मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला'
धर्मेंद्र ने आगे कहा, 'मेरा सिल्वर, गोल्डन जुबली सब हुआ लेकिन मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला। फिर कुछ सालों बाद, मैंने हार मान ली। मैंने फैसला किया कि मैं टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर अवॉर्ड फंक्शन में जाऊंगा या कच्छा पहनकर चला जाऊंगा।'
धर्मेंद्र से पूछा गया कि उन्हें कोई पुरस्कार क्यों नहीं मिला?
अपने अलग-अलग इंटरव्यू में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनता का स्नेह ही आपकी असली पहचान है। वह लोगों से मिलने वाले प्यार को किसी शेल्फ पर पड़ी धूल भरी ट्रॉफियों से कहीं बेहतर मानते हैं। पीटीआई के साथ एक पुराने इंटरव्यू में, धर्मेंद्र से पूछा गया कि उन्हें कोई पुरस्कार क्यों नहीं मिला? जिस पर उन्होंने कहा था, 'आमतौर पर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड पाने का मतलब रिटायरमेंट होता है लेकिन मैं शांत नहीं बैठूंगा। मैं इस पर कॉमेंट नहीं करना चाहता कि मुझे अवॉर्ड क्यों नहीं मिला। हालांकि मुझे लगता है कि मैं फूल और पत्थर, सत्यकाम, चुपके चुपके, प्रतिज्ञा, शोले और नया जमाना समेत कई अन्य फिल्मों के लिए इसका हकदार था।'
धर्मेंद्र ने अपने 65 साल के करियर में कई ब्लॉकबस्टर फिल्में की जिसपर उन्हें क्रिटिक्स से भर-भरकर तारीफें मिलीं। एक एक्टर के रूप में उनका ये सफर जहां शानदार है वहीं एक आह भी है। अपने शानदार दौर में बॉलीवुड के 'ही-मैन' एक्टिंग की दुनिया में अपने सदाबहार रोमांटिक और कॉमेडी जैसे रोल सभी तरह के रोल निभाए।
300 से ज्यादा फिल्में, नहीं मिला बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड
बता दें कि धर्मेंद्र का करियर 1960 में शुरू हुआ था। उन्होंने फिल्म 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' में लीड रोल किया था और यह उनकी पहली फिल्म थी, जिसमें उन्हें मात्र 51 रुपये मिले थे। वहीं 'गरम धरम' के नाम से मशहूर धर्मेंद्र 60 के दशक के अंत तक स्टार बन चुके थे। वहीं 300 से ज्यादा फिल्में करने के बावजूद उन्हें अपने करियर की शुरुआत में बेस्ट टैलेंट के लिए सिर्फ एक फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला और काफी समय बाद उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। धर्मंद्र की फिल्मों में 'फूल और पत्थर', 'शोले', 'प्रतिज्ञा', 'सत्यकाम', 'मेरा गांव मेरा देश' और 'चुपके चुपके' जैसी हिट फिल्में शामिल थीं।
'धूल भरी ट्रॉफियों' से ज्यादा अहमियत
धर्मेंद्र ने कई बार पॉप्युलर फिल्म अवॉर्ड का बेस्ट एक्टर अवॉर्ड न मिलने की बात कही है। उन्होंने ये भी कहा था कि शुरुआत में यह बात उन्हें परेशान करती थीं, लेकिन अब वह अपने दर्शकों के अपार प्यार को 'धूल भरी ट्रॉफियों' से ज्यादा अहमियत देते हैं।
'हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता'
दिलीप कुमार और सायरा बानो ने साल 1997 में 42वें फिल्मफेयर अवॉर्ड में धर्मेंद्र को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया। इस मौके पर एक्टर ने कहा था, 'मुझे काम करते हुए 37 साल हो गए हैं। हर साल मैं एक नया सूट सिलवाता था, मैचिंग टाई ढूंढता था, इस उम्मीद में कि मुझे कोई अवॉर्ड मिलेगा लेकिन मुझे कभी अवॉर्ड नहीं मिला।'
'लेकिन मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला'
धर्मेंद्र ने आगे कहा, 'मेरा सिल्वर, गोल्डन जुबली सब हुआ लेकिन मुझे कोई अवॉर्ड नहीं मिला। फिर कुछ सालों बाद, मैंने हार मान ली। मैंने फैसला किया कि मैं टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर अवॉर्ड फंक्शन में जाऊंगा या कच्छा पहनकर चला जाऊंगा।'
धर्मेंद्र से पूछा गया कि उन्हें कोई पुरस्कार क्यों नहीं मिला?
अपने अलग-अलग इंटरव्यू में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनता का स्नेह ही आपकी असली पहचान है। वह लोगों से मिलने वाले प्यार को किसी शेल्फ पर पड़ी धूल भरी ट्रॉफियों से कहीं बेहतर मानते हैं। पीटीआई के साथ एक पुराने इंटरव्यू में, धर्मेंद्र से पूछा गया कि उन्हें कोई पुरस्कार क्यों नहीं मिला? जिस पर उन्होंने कहा था, 'आमतौर पर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड पाने का मतलब रिटायरमेंट होता है लेकिन मैं शांत नहीं बैठूंगा। मैं इस पर कॉमेंट नहीं करना चाहता कि मुझे अवॉर्ड क्यों नहीं मिला। हालांकि मुझे लगता है कि मैं फूल और पत्थर, सत्यकाम, चुपके चुपके, प्रतिज्ञा, शोले और नया जमाना समेत कई अन्य फिल्मों के लिए इसका हकदार था।'
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