नई दिल्ली: अमेरिका ने मौकापरस्ती और डबल स्टैंडर्ड की हद कर दी है। भारत के मामले में उसकी यह चाल पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। वह अपने आप को एक्सपोज कर चुका है। जहां रूसी तेल खरीदने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाए हैं। वहीं, उससे कहीं ज्यादा रूसी तेल खरीदने वाले चीन को बख्श दिया गया है। ट्रंप प्रशासन के नेता और मंत्री अब भारत पर टैरिफ लगाने और चीन को छूट देने के पीछे अनाप-शनाप के तर्क दे रहे हैं। उन्हें एहसास हो गया है कि यह खुली दादागिरी है।
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार को भारत पर रूसी तेल के आयात को लेकर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के वाशिंगटन के फैसले का बचाव किया। उन्होंने चीन को बख्शने की बात भी कही। बेसेंट ने तर्क दिया कि चीन की रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता नई दिल्ली की तुलना में मामूली रूप से बढ़ी है। लिहाजा, चीन को बख्शा गया है। उनके मुताबिक, भारत रूसी तेल से मुनाफाखोरी कर रहा है। इसे फिर से बेच रहा है। ऐसे में भारत पर टैरिफ लगाया गया है। वहीं, विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि चीनी रिफाइनरियों पर प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल बाजार बाधित हो सकता है। इसलिए चीन को बख्शा गया है। वाशिंगटन ने भारत के रूसी तेल खरीदने पर 50% टैरिफ लगाया है।
बयानों में जमीन-आसमान का अंतर
ट्रंप प्रशासन के इन दोनों शीर्ष नेताओं के बयानों में जमीन आसमान का अंतर है। इससे पता चलता है कि भारत पर टैरिफ लगाने का वास्तव में अमेरिका के पास कोई ठोस कारण था ही नहीं। इसे सिर्फ तुनककर लगा दिया गया है।
बेसेंट ने सीएनबीसी को बताया कि चीन का तेल आयात करना अच्छा नहीं है। लेकिन, 2022 से पहले चीन का 13% तेल रूस से आता था। अब यह 16% है। इसलिए चीन के पास तेल के कई स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि भारत का तेल आयात बहुत कम था। पहले भारत का 1% से भी कम तेल रूस से आता था। अब यह 42% तक पहुंच गया है। बेसेंट ने कहा कि भारत मुनाफाखोरी करके 16 अरब डॉलर का अतिरिक्त लाभ कमाया है। भारत के कुछ सबसे अमीर परिवारों ने यह लाभ कमाया है। उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अलग बात है।
बेसेंट ने इसे 'भारतीय आर्बिट्राज' कहा। इसका मतलब है कि भारत सस्ते रूसी तेल को खरीदकर उसे उत्पाद के रूप में फिर से बेच रहा है। यह युद्ध के दौरान शुरू हुआ है जो अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि ऐसी खरीदारी से मॉस्को को अपनी युद्ध अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिल रही है।
अमेरिका ने चीन को क्यों बख्शा?बेसेंट ने कहा कि रूसी अर्थव्यवस्था में 20% से ज्यादा महंगाई है। यह युद्ध अर्थव्यवस्था है। जीडीपी का 25% से अधिक सैन्य निर्माण से आ रहा है। इसलिए वहां की अर्थव्यवस्था बहुत असंतुलित है। जमे हुए रूसी संपत्ति से मिलने वाले धन का इस्तेमाल अब युद्ध को फाइनेंस करने के लिए किया जा रहा है।
मार्को रुबियो ने फॉक्स बिजनेस को बताया कि चीन को क्यों बख्शा गया। उन्होंने कहा कि चीनी रिफाइनरियों पर प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल बाजार बाधित हो सकता है। उन्होंने कहा, 'अगर आप किसी देश पर सेकेंडरी टैरिफ लगाते हैं। मान लीजिए कि आप रूस से चीन को तेल की बिक्री पर कार्रवाई करते हैं। तो, चीन उस तेल को रिफाइन करता है। फिर वह तेल वैश्विक बाजार में बेचा जाता है। जो कोई भी उस तेल को खरीद रहा है, उसे इसके लिए अधिक भुगतान करना होगा या अगर यह मौजूद नहीं है तो उसे इसके लिए एक वैकल्पिक स्रोत खोजना होगा।
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार को भारत पर रूसी तेल के आयात को लेकर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के वाशिंगटन के फैसले का बचाव किया। उन्होंने चीन को बख्शने की बात भी कही। बेसेंट ने तर्क दिया कि चीन की रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता नई दिल्ली की तुलना में मामूली रूप से बढ़ी है। लिहाजा, चीन को बख्शा गया है। उनके मुताबिक, भारत रूसी तेल से मुनाफाखोरी कर रहा है। इसे फिर से बेच रहा है। ऐसे में भारत पर टैरिफ लगाया गया है। वहीं, विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि चीनी रिफाइनरियों पर प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल बाजार बाधित हो सकता है। इसलिए चीन को बख्शा गया है। वाशिंगटन ने भारत के रूसी तेल खरीदने पर 50% टैरिफ लगाया है।
बयानों में जमीन-आसमान का अंतर
ट्रंप प्रशासन के इन दोनों शीर्ष नेताओं के बयानों में जमीन आसमान का अंतर है। इससे पता चलता है कि भारत पर टैरिफ लगाने का वास्तव में अमेरिका के पास कोई ठोस कारण था ही नहीं। इसे सिर्फ तुनककर लगा दिया गया है।
बेसेंट ने सीएनबीसी को बताया कि चीन का तेल आयात करना अच्छा नहीं है। लेकिन, 2022 से पहले चीन का 13% तेल रूस से आता था। अब यह 16% है। इसलिए चीन के पास तेल के कई स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि भारत का तेल आयात बहुत कम था। पहले भारत का 1% से भी कम तेल रूस से आता था। अब यह 42% तक पहुंच गया है। बेसेंट ने कहा कि भारत मुनाफाखोरी करके 16 अरब डॉलर का अतिरिक्त लाभ कमाया है। भारत के कुछ सबसे अमीर परिवारों ने यह लाभ कमाया है। उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अलग बात है।
बेसेंट ने इसे 'भारतीय आर्बिट्राज' कहा। इसका मतलब है कि भारत सस्ते रूसी तेल को खरीदकर उसे उत्पाद के रूप में फिर से बेच रहा है। यह युद्ध के दौरान शुरू हुआ है जो अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि ऐसी खरीदारी से मॉस्को को अपनी युद्ध अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिल रही है।
अमेरिका ने चीन को क्यों बख्शा?बेसेंट ने कहा कि रूसी अर्थव्यवस्था में 20% से ज्यादा महंगाई है। यह युद्ध अर्थव्यवस्था है। जीडीपी का 25% से अधिक सैन्य निर्माण से आ रहा है। इसलिए वहां की अर्थव्यवस्था बहुत असंतुलित है। जमे हुए रूसी संपत्ति से मिलने वाले धन का इस्तेमाल अब युद्ध को फाइनेंस करने के लिए किया जा रहा है।
मार्को रुबियो ने फॉक्स बिजनेस को बताया कि चीन को क्यों बख्शा गया। उन्होंने कहा कि चीनी रिफाइनरियों पर प्रतिबंध लगाने से ग्लोबल बाजार बाधित हो सकता है। उन्होंने कहा, 'अगर आप किसी देश पर सेकेंडरी टैरिफ लगाते हैं। मान लीजिए कि आप रूस से चीन को तेल की बिक्री पर कार्रवाई करते हैं। तो, चीन उस तेल को रिफाइन करता है। फिर वह तेल वैश्विक बाजार में बेचा जाता है। जो कोई भी उस तेल को खरीद रहा है, उसे इसके लिए अधिक भुगतान करना होगा या अगर यह मौजूद नहीं है तो उसे इसके लिए एक वैकल्पिक स्रोत खोजना होगा।
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