श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र शासित प्रदेश में ‘दरबार मूव’ की परंपरा को बहाल करने का बृहस्पतिवार को आदेश दिया। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन ने 2021 में ‘दरबार स्थानांतरण’ की परंपरा को खत्म कर दिया था। अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सरकार के एक वर्ष पूरे होने के अवसर पर यहां संवाददाताओं से कहा कि आज मैंने आधिकारिक फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए हैं और मुझे उम्मीद है कि आदेश जल्द ही जारी हो जाएगा। हम दरबार स्थानांतरण की पुरानी परंपरा को बहाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘हमने लोगों से वादा किया था कि हम दरबार स्थानांतरण को बहाल करेंगे। मंत्रिमंडल ने इसे बहाल करने का निर्णय लिया है। फाइल उपराज्यपाल के पास भेजी गई उन्होंने हस्ताक्षर करके फाइल वापस कर दी है।’
क्या है दरबार मूव
‘दरबार स्थानांतरण’ की शुरुआत 1872 में डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में हुई थी, जिन्होंने दोनों क्षेत्रों के चरम मौसम से बचने के लिए शाही दरबार को श्रीनगर और जम्मू के बीच स्थानांतरित करना शुरू किया था। इस व्यवस्था के तहत, सरकारी कार्यालय गर्मियों के महीनों में श्रीनगर से संचालित होते थे और सर्दियों में जम्मू में स्थानांतरित हो जाते थे। इस कवायद में लगभग 10,000 कर्मचारियों के साथ-साथ दस्तावेजों, कंप्यूटर और फर्नीचर को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता था। वर्ष में दो बार दर्जनों ट्रकों से जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग से ये ले जाए जाते थे।
बीजेपी पर बोला हमला
बीजेपी पर निशाना साधते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि दरबार स्थानांतरण को क्यों रोका गया? यह लंबे समय से चली आ रही परंपरा थी। जो लोग हम पर 1947 से पहले के जम्मू-कश्मीर के इतिहास को न समझने और इस क्षेत्र की महान हस्तियों का सम्मान न करने का आरोप लगाते हैं, उन्हें बता दें कि भाजपा से ज़्यादा उनकी विरासत को किसी ने नुकसान नहीं पहुंचाया है। विपक्षी दल और व्यापारी वर्षों से ‘दरबार स्थानांतरण’ व्यवस्था बहाल करने की पुरज़ोर वकालत कर रहे थे। अधिकारी अक्सर मौसम की स्थिति और कर्मचारियों की सुविधा को इस परंपरा को जारी रखने का कारण बताते हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह बोझिल और महंगी है, जिससे सरकारी खजाने को प्रतिवर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
क्यों किया था इस प्रथा को समाप्त
सिन्हा प्रशासन ने 2021 में तर्क दिया था कि इस प्रथा को समाप्त करने से बचाए गए धन का सार्वजनिक सेवाओं के लिए बेहतर उपयोग किया जा सकता है और अभिलेखों के डिजिटलीकरण ने इस कदम को अनावश्यक बना दिया है। अब्दुल्ला ने दिसंबर 2023 में घोषणा की थी कि अगर उनकी नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में लौटी, तो वह ‘दरबार स्थानांतरण’ व्यवस्था को बहाल करेगी। इस बीच, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा कि अब्दुल्ला सरकार का एक साल का कार्यकाल नाकामी की मिसाल है। उन्होंने अब्दुल्ला पर झूठे घोषणापत्र और खोखले आश्वासनों के साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों को मूर्ख बनाने का आरोप लगाया। ठाकुर ने कहा कि 12 मुफ्त एलपीजी सिलेंडर, प्रति माह 10 किलोग्राम राशन, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और छह महीने के भीतर एक लाख नौकरियां देने का वादा कहां है? एक भी वादा पूरा नहीं किया गया।
क्या है दरबार मूव
‘दरबार स्थानांतरण’ की शुरुआत 1872 में डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में हुई थी, जिन्होंने दोनों क्षेत्रों के चरम मौसम से बचने के लिए शाही दरबार को श्रीनगर और जम्मू के बीच स्थानांतरित करना शुरू किया था। इस व्यवस्था के तहत, सरकारी कार्यालय गर्मियों के महीनों में श्रीनगर से संचालित होते थे और सर्दियों में जम्मू में स्थानांतरित हो जाते थे। इस कवायद में लगभग 10,000 कर्मचारियों के साथ-साथ दस्तावेजों, कंप्यूटर और फर्नीचर को भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता था। वर्ष में दो बार दर्जनों ट्रकों से जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग से ये ले जाए जाते थे।
बीजेपी पर बोला हमला
बीजेपी पर निशाना साधते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि दरबार स्थानांतरण को क्यों रोका गया? यह लंबे समय से चली आ रही परंपरा थी। जो लोग हम पर 1947 से पहले के जम्मू-कश्मीर के इतिहास को न समझने और इस क्षेत्र की महान हस्तियों का सम्मान न करने का आरोप लगाते हैं, उन्हें बता दें कि भाजपा से ज़्यादा उनकी विरासत को किसी ने नुकसान नहीं पहुंचाया है। विपक्षी दल और व्यापारी वर्षों से ‘दरबार स्थानांतरण’ व्यवस्था बहाल करने की पुरज़ोर वकालत कर रहे थे। अधिकारी अक्सर मौसम की स्थिति और कर्मचारियों की सुविधा को इस परंपरा को जारी रखने का कारण बताते हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह बोझिल और महंगी है, जिससे सरकारी खजाने को प्रतिवर्ष लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
क्यों किया था इस प्रथा को समाप्त
सिन्हा प्रशासन ने 2021 में तर्क दिया था कि इस प्रथा को समाप्त करने से बचाए गए धन का सार्वजनिक सेवाओं के लिए बेहतर उपयोग किया जा सकता है और अभिलेखों के डिजिटलीकरण ने इस कदम को अनावश्यक बना दिया है। अब्दुल्ला ने दिसंबर 2023 में घोषणा की थी कि अगर उनकी नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में लौटी, तो वह ‘दरबार स्थानांतरण’ व्यवस्था को बहाल करेगी। इस बीच, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा कि अब्दुल्ला सरकार का एक साल का कार्यकाल नाकामी की मिसाल है। उन्होंने अब्दुल्ला पर झूठे घोषणापत्र और खोखले आश्वासनों के साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों को मूर्ख बनाने का आरोप लगाया। ठाकुर ने कहा कि 12 मुफ्त एलपीजी सिलेंडर, प्रति माह 10 किलोग्राम राशन, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और छह महीने के भीतर एक लाख नौकरियां देने का वादा कहां है? एक भी वादा पूरा नहीं किया गया।
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