शिक्षा का केन्द्र: उज्जैन का सांदीपनि आश्रम
गुरु सांदीपनि का आश्रम उज्जैन के मंगलनाथ रोड पर स्थित था। वेबसाइट ujjain.nic.in पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि यही वही गुरुकुल था जहां श्रीकृष्ण, उनके भाई बलराम और उनका मित्र सुदामा शिक्षा प्राप्त करते थे। यह आश्रम महाभारत युग में एक प्रतिष्ठित शिक्षण केन्द्र था, जहां वेद, शास्त्र, कला और युद्धकला जैसी विद्याएं को सिखाया जाता था।(Image Credit - BCCL)
आज आध्यात्म, पर्यटन और श्रद्धा का केंद्र
आज उज्जैन का संदीपनि आश्रम ना केवल धार्मिक मान्यता का केन्द्र है बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटक के लिहाज से भी अहम हो चुका है। आश्रम में प्रवेश निशुल्क है और सुबह 6 से शाम 7 बजे तक रहता है।
यहां प्रतिमा, मंदिर और प्राचीन वास्तुकला जैसी चीजें भी देखने को मिलती हैं। आश्रम में गोमती कुंड है को लेकर मान्यता है कि कृष्ण ने यहां सारी पवित्र नदियों का जल एकत्र किया था।
कलाओं और विद्याओं का रहस्य
ऐसी भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने मात्र 64 दिनों में अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी और इस दौरान उन्होंने 64 कलाएं और 16 विद्याएं सीख ली थीं। यह उनकी दिव्य और तेज बुद्धि का एक प्रमाण माना जाता है।
शिक्षा का मूल्य नहीं, गुरु दक्षिणा बनी आदर और कर्तव्य का प्रतीक

शिक्षा पूरी होने पर भगवान कृष्ण और बलराम ने गुरु को गुरुदक्षिणा समर्पित करने की इच्छा जताई। उस समय शिक्षा पर कोई फीस या मूल्य नहीं होता था। गुरु दक्षिणा की परंपरा गुरु-शिष्य के अटूट बंधन और आदर की अमर मिसाल का प्रतीक मानी जाती है। कृष्ण ने गुरु दक्षिणा के रूप में उनके खो चुके या अगवा हो चुके बेटे को वापस लाने की इच्छा जताई और ऐसा करने में सफल रहे।
जीवंत लोक कथाएं
ऐसा कहते हैं कि संदीपनि आश्रम की जगह काका नाम अंकपात इस मिथक से जुड़ा है कि कृष्ण यहां अपनी लेखनी की धुलाई यानी अपनी लेखनी को मांझते थे इसलिए इसे अंकों की पात भूमि कहा गया। इसी जगह को कृष्ण और सुदामा की ऐतिहासिक मित्रता की नींव भी माना जाता है।
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