अलास्का में रूसी राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मुलाकात की उम्मीदें अब पुरानी लगने लगी हैं। अगस्त की वह तस्वीर, जिसमें दोनों नेता एक ही कार में थे, अब यूक्रेन युद्ध पर बातचीत शुरू होने की उम्मीद जगाती थी। लेकिन, रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों, Rosneft और Lukoil पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने इस उम्मीद को खत्म कर दिया है। इस अमेरिकी फैसले का असर भारत सहित पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा।
ट्रंप बुडापेस्ट में पुतिन से मिलने वाले थे, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि वह ऐसी बैठक नहीं करना चाहते जो बेकार साबित हो। इसके ठीक अगले दिन, रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ट्रंप सरकार का मानना है कि रूस युद्ध में अपने तेल व्यापार के दम पर टिका हुआ है। इसलिए, यह कदम रूस पर दबाव बनाने के लिए उठाया गया है।
पहले भी अमेरिका रूसी तेल पर आपत्ति जताता रहा है, लेकिन भारत और चीन के ज़रिए इसके व्यापार की छूट देता रहा था। अमेरिकी सहमति के कारण ही दुनिया में तेल की सप्लाई पहले की तरह जारी थी। लेकिन अब नए प्रतिबंध सीधे कंपनियों पर लगाए गए हैं। इसका मतलब है कि इन कंपनियों के साथ किसी भी तरह का व्यापार करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
रूस ग्लोबल ऑयल प्रोडक्शन का 11% हिस्सा रखता है, और ये दोनों कंपनियां इसमें से लगभग आधा उत्पादन करती हैं। इन पर बैन लगने से कच्चे तेल की ग्लोबल सप्लाई घट सकती है। हालांकि ओपेक देशों ने अमेरिका के कहने पर पहले ही उत्पादन बढ़ा दिया है, लेकिन रूस के सस्ते तेल की कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा।
भारत पर असर
अमेरिकी प्रतिबंधों का असर भारत पर भी पड़ेगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज और अन्य सरकारी व निजी तेल रिफाइनरी कंपनियां रूसी तेल पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं। रिलायंस तो Rosneft की सबसे बड़ी भारतीय खरीदार है। भारतीय कंपनियों ने रूस से तेल खरीदना कम करने की तैयारी शुरू कर दी है।
ब्रेंट क्रूड के दाम में 5% का उछाल अमेरिकी बैन के बाद ब्रेंट क्रूड के दाम में 5% का उछाल आया है। 21 नवंबर से जब ये प्रतिबंध पूरी तरह लागू हो जाएंगे, तो क्रूड ऑयल की कीमतों में और तेज़ी आ सकती है। यह भारत जैसे देशों के लिए चिंता की बात है, क्योंकि भारत अपनी 85% तेल ज़रूरतें आयात से पूरी करता है।
बड़ी चुनौती
यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी होगी। रूसी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार और कंपनियों को मिलकर काम करना होगा। यह देखना होगा कि भारत इस मुश्किल दौर से कैसे निपटता है।
प्रतिबंध सिर्फ़ रूस पर ही नहीं...
यह प्रतिबंध सिर्फ़ रूस पर ही नहीं, बल्कि उन देशों पर भी असर डालेगा जो रूस से तेल खरीदते हैं। तेल की बढ़ती कीमतें आम आदमी की जेब पर भारी पड़ेंगी। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे, जिससे महंगाई और बढ़ेगी। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेरिका अपने प्रतिबंधों पर कायम रहता है या फिर बातचीत के ज़रिए कोई समाधान निकलता है। फिलहाल, दुनिया भर के तेल बाज़ार में अनिश्चितता का माहौल है।
ट्रंप बुडापेस्ट में पुतिन से मिलने वाले थे, लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि वह ऐसी बैठक नहीं करना चाहते जो बेकार साबित हो। इसके ठीक अगले दिन, रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ट्रंप सरकार का मानना है कि रूस युद्ध में अपने तेल व्यापार के दम पर टिका हुआ है। इसलिए, यह कदम रूस पर दबाव बनाने के लिए उठाया गया है।
पहले भी अमेरिका रूसी तेल पर आपत्ति जताता रहा है, लेकिन भारत और चीन के ज़रिए इसके व्यापार की छूट देता रहा था। अमेरिकी सहमति के कारण ही दुनिया में तेल की सप्लाई पहले की तरह जारी थी। लेकिन अब नए प्रतिबंध सीधे कंपनियों पर लगाए गए हैं। इसका मतलब है कि इन कंपनियों के साथ किसी भी तरह का व्यापार करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
रूस ग्लोबल ऑयल प्रोडक्शन का 11% हिस्सा रखता है, और ये दोनों कंपनियां इसमें से लगभग आधा उत्पादन करती हैं। इन पर बैन लगने से कच्चे तेल की ग्लोबल सप्लाई घट सकती है। हालांकि ओपेक देशों ने अमेरिका के कहने पर पहले ही उत्पादन बढ़ा दिया है, लेकिन रूस के सस्ते तेल की कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा।
भारत पर असर
अमेरिकी प्रतिबंधों का असर भारत पर भी पड़ेगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज और अन्य सरकारी व निजी तेल रिफाइनरी कंपनियां रूसी तेल पर बहुत ज़्यादा निर्भर हैं। रिलायंस तो Rosneft की सबसे बड़ी भारतीय खरीदार है। भारतीय कंपनियों ने रूस से तेल खरीदना कम करने की तैयारी शुरू कर दी है।
ब्रेंट क्रूड के दाम में 5% का उछाल अमेरिकी बैन के बाद ब्रेंट क्रूड के दाम में 5% का उछाल आया है। 21 नवंबर से जब ये प्रतिबंध पूरी तरह लागू हो जाएंगे, तो क्रूड ऑयल की कीमतों में और तेज़ी आ सकती है। यह भारत जैसे देशों के लिए चिंता की बात है, क्योंकि भारत अपनी 85% तेल ज़रूरतें आयात से पूरी करता है।
बड़ी चुनौती
यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी होगी। रूसी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार और कंपनियों को मिलकर काम करना होगा। यह देखना होगा कि भारत इस मुश्किल दौर से कैसे निपटता है।
प्रतिबंध सिर्फ़ रूस पर ही नहीं...
यह प्रतिबंध सिर्फ़ रूस पर ही नहीं, बल्कि उन देशों पर भी असर डालेगा जो रूस से तेल खरीदते हैं। तेल की बढ़ती कीमतें आम आदमी की जेब पर भारी पड़ेंगी। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ेंगे, जिससे महंगाई और बढ़ेगी। सरकार को इस स्थिति से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अमेरिका अपने प्रतिबंधों पर कायम रहता है या फिर बातचीत के ज़रिए कोई समाधान निकलता है। फिलहाल, दुनिया भर के तेल बाज़ार में अनिश्चितता का माहौल है।
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