सुप्रीम कोर्ट आज (22 अगस्त 2025) एक महत्वपूर्ण और विवादित फैसले का ऐलान करने जा रही है। मामला दिल्ली और उसके आसपास के चार जिलों – नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद – से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने के आदेश को चुनौती देने से जुड़ा है। यह आदेश 8 अगस्त को जारी हुआ था और अब सवाल यह है कि इसे रोका जाएगा, संशोधित किया जाएगा या जस का तस लागू रहेगा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच, जिसमें न्यायमूर्ति संदीप मेहता और एनवी अंजरिया शामिल हैं, यह तय करेगी कि 8 अगस्त का आदेश पूरी तरह लागू रहेगा, इसमें बदलाव किया जाएगा या इसे स्थगित किया जाएगा।
8 अगस्त का आदेश और उसका विस्तार
8 अगस्त को जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने निर्देश दिया था कि आठ हफ्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर स्थायी शेल्टर में रखा जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए। बाद में, इस आदेश को फरीदाबाद तक बढ़ा दिया गया और 5,000 क्षमता वाले शेल्टर आठ हफ्तों में बनाने का निर्देश भी जोड़ा गया। इस आदेश पर तुरंत विवाद खड़ा हो गया। कई एनजीओ और पशु-कल्याण समूहों ने कहा कि यह आदेश ‘प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट’ और ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियमों’ के खिलाफ है। इन नियमों के अनुसार कुत्तों का नसबंदी और टीकाकरण कर उन्हें उसी इलाके में छोड़ना होता है, न कि बड़े पैमाने पर शेल्टरों में बंद करना।
मुख्य न्यायाधीश ने बदली बेंच
आलोचना और नई याचिकाओं के मद्देनज़र, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने मामले को पारदीवाला बेंच से वापस लेकर तीन जजों की बड़ी बेंच को सौंपा। इस बेंच ने 14 अगस्त को लंबी सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा, जो अब शुक्रवार को सुनाया जाएगा। सुनवाई के दौरान बड़ी बेंच ने दिल्ली सरकार और नगर निगमों को फटकार लगाई कि वे अपने बनाए नियमों को लागू नहीं कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि इंसानों की सुरक्षा और पशु-कल्याण, दोनों प्रभावित हो रहे हैं। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि वह कानून का पालन करेगी या नहीं।
सरकार और विपक्षी पक्षों की दलीलें
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बच्चों पर हमलों और डॉग बाइट से मौतों के उदाहरण पेश करते हुए कहा कि तत्काल हस्तक्षेप ज़रूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कुत्तों को मारना नहीं है, लेकिन उन्हें अलग करना, नसबंदी और इलाज करना जरूरी है। वहीं, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा समेत वरिष्ठ वकीलों ने एनजीओ की ओर से कहा कि यह आदेश अवैध और अमान्य है। उन्होंने दिल्ली सरकार के आंकड़े दिखाए कि हाल में डॉग बाइट से कोई मौत नहीं हुई, जिससे आदेश की आधारहीनता सामने आई। 11 अगस्त को जारी लिखित आदेश में शेल्टर में कुत्तों के साथ क्रूरता न हो, उन्हें भूखा न रखा जाए, भीड़भाड़ से बचा जाए, कमजोर कुत्तों को अलग रखा जाए और समय पर पशु-चिकित्सा मिले जैसी शर्तें जोड़ दी गईं। साथ ही, एनिमल वेलफेयर बोर्ड की मंजूरी से गोद लेने की अनुमति दी गई, लेकिन गोद लिए गए कुत्तों को सड़क पर छोड़ने पर “कड़ी कार्रवाई” का निर्देश भी शामिल किया गया।
मामले की शुरुआत
यह पूरा मामला तब उठा जब छह साल की बच्ची कुत्ते के काटने के बाद रेबीज से मृत्यु के शिकार हो गई। पारदीवाला बेंच ने कहा कि डॉग बाइट की घटनाएँ “चिंताजनक पैटर्न” दिखा रही हैं और स्थानीय निकाय सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे हैं।
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