पोरबंदर, 27 सितंबर . Gujarat की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक रास-गरबा, आज के आधुनिक युग में पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण युवाओं के बीच अपनी चमक खोता जा रहा है. लेकिन पोरबंदर जिले का मेहर समुदाय इस प्राचीन परंपरा को न केवल जीवित रखे हुए है, बल्कि इसे ‘मनियारो रास’ के रूप में नई ऊंचाइयों तक ले जा रहा है. नवरात्रि के पावन पर्व के दौरान, मेहर समुदाय अपनी पारंपरिक वेशभूषा और भारी-भरकम सोने के आभूषणों के साथ इस नृत्य को उत्साहपूर्वक प्रस्तुत करता है, जो न केवल स्थानीय लोगों बल्कि देश-विदेश के दर्शकों को भी आकर्षित करता है.
पोरबंदर में मेहर समुदाय की बड़ी आबादी निवास करती है. यह समुदाय, जो कभी राजपूत क्षत्रिय जाति के रूप में जाना जाता था, अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध और विजय का प्रतीक रहा है. इतिहास में, जब मेहर समुदाय विजय प्राप्त करता था, तब बुंगिया ढोल की थाप पर उत्सव मनाया जाता था, जिसने मनियारो रास को जन्म दिया. यह नृत्य जन्माष्टमी, होली और विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान पारंपरिक पोशाक में किया जाता है. मेहर समुदाय ने इस कला को न केवल संरक्षित किया है, बल्कि इसे आधुनिक युग में भी जीवंत बनाए रखा है.
हर साल, पोरबंदर में श्री इंटरनेशनल मेहर सुप्रीम काउंसिल द्वारा मनियारो रास-गरबा का भव्य आयोजन किया जाता है. इस वर्ष यह आयोजन अपनी रजत जयंती मना रहा है, जो मेहर समुदाय की सांस्कृतिक समृद्धि और समर्पण का प्रतीक है. इस महोत्सव में मेहर समुदाय के पांच भाई पारंपरिक वेशभूषा में सजकर रास-गरबा प्रस्तुत करते हैं, जबकि महिलाएं 20 से 25 तोले सोने के आभूषण पहनकर इस नृत्य में हिस्सा लेती हैं. यह नजारा न केवल सांस्कृतिक गौरव को दर्शाता है, बल्कि समुदाय की आर्थिक समृद्धि और परंपराओं के प्रति अटूट विश्वास को भी प्रदर्शित करता है.
श्री इंटरनेशनल मेहर सुप्रीम काउंसिल के आयोजन में हिस्सा लेने वाले भोजभाई लीलाभाई आगथ ने कहा, “हम पिछले 25 वर्षों से नवरात्रि महोत्सव मना रहे हैं. हमारा मनियारो रास, जिसे सोनिया रास भी कहा जाता है, सूर्य का प्रतीक है. यह नृत्य देश-विदेश में लोकप्रिय है और इसे पूरी दुनिया में प्रदर्शित किया गया है. हमारे Prime Minister Narendra Modi भी इस रास को बहुत पसंद करते हैं. जब भी India में कोई विदेशी मेहमान आता है, हमारी यह प्रस्तुति उन्हें जरूर दिखाई जाती है.”
भोजभाई ने बताया कि यह रास सवरास क्षेत्र में बसे मेहर समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है और इसे जीवित रखना उनका कर्तव्य है.
Gujarat के लोकनृत्यों में रास के कई रूप प्रचलित हैं, लेकिन मनियारो रास अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है. यह नृत्य विशेष रूप से पोरबंदर में लोकप्रिय है और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी प्रदर्शित किया जाता है. पुरुष इस नृत्य को अंगनी, चोयानी पगड़ी, खेस और मनियारो रास की पारंपरिक पोशाक में प्रस्तुत करते हैं. वहीं, महिलाएं धारवा, ओढ़नी, गले में सोने का हार (जमुना), और कानों में झुमके पहनकर इस नृत्य का आनंद लेती हैं.
रमाबेन भूतिया खेलया ने बताया, “नवरात्रि भक्ति और शक्ति का त्योहार है. हम सामुदायिक आंगन में माता की आराधना करते हुए रास-गरबा करते हैं. इस दौरान हम अपनी पारंपरिक वेशभूषा और आभूषणों से सजकर उत्साह के साथ नृत्य करते हैं.”
विमलजी ओडेदरा ने बताया, “इस साल हमारी रजत जयंती है. पिछले 25 वर्षों से हमारा यह सांस्कृतिक आयोजन मेहर समुदाय की परंपराओं को जीवित रखने का प्रतीक है. हमारा मनियारो रास हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे हम अपनी पारंपरिक वेशभूषा में प्रस्तुत करते हैं. यह आयोजन पहले मेहर सुप्रीम काउंसिल के तहत शुरू हुआ था और 2020 से श्री इंटरनेशनल मेहर सुप्रीम काउंसिल के अंतर्गत संचालित हो रहा है. हर साल 8 से 10 हजार लोग इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं, जिसमें स्थानीय और आसपास के क्षेत्रों से लोग शामिल होते हैं.”
आज के समय में, जब सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं, मेहर समुदाय की महिलाएं बिना किसी डर के 20 से 25 तोले सोने के आभूषण पहनकर रास-गरबा करती हैं. यह न केवल उनकी आर्थिक समृद्धि को दर्शाता है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक निष्ठा को भी उजागर करता है. पुरुष और महिलाएं अपने अलग-अलग नृत्य शैलियों और स्टेप्स के साथ इस आयोजन को और भी रंगीन बनाते हैं.
नवरात्रि के पांचवें दिन, पोरबंदर के सुदामापुरी में मेहर समुदाय की बहनों ने पारंपरिक वेशभूषा में मनियारो और रसड़ा का आयोजन किया. इस अवसर पर 10 से 12 हजार भाई-बहनों ने एक ही मैदान में एक साथ नृत्य किया, जिसने मेहर समुदाय की सांस्कृतिक समृद्धि की झलक प्रस्तुत की. एक महिला ने अपने शरीर पर 20 तोले सोने के आभूषण पहनकर पारंपरिक रसड़ा किया और माता की पूजा की.
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एनएस/एएस
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