मुंबई, 12 मई . टीवी एक्ट्रेस अशिता धवन ने से खास बातचीत की और टीवी इंडस्ट्री में आ रहे बदलावों पर अपनी राय साझा की. उन्होंने बताया कि पहले टीवी शोज सालों-साल चलते थे और उनमें सैकड़ों या हजारों एपिसोड होते थे, जैसे एकता कपूर के लोकप्रिय शोज. उन्हें टीवी की क्वीन माना जाता है, क्योंकि उन्होंने ऐसे शोज बनाए जो लंबे समय तक लोगों के दिलों में बसे रहे लेकिन आज की टीवी दुनिया बदल चुकी है.
से बात करते हुए एक्ट्रेस अशिता धवन ने कहा, ”अब टीआरपी से शो की लंबाई तय होती है. अगर किसी शो को जल्दी अच्छे व्यूज नहीं मिलते, तो उसे जल्द ही बंद कर दिया जाता है, जिसके चलते अब ज्यादातर शोज छोटे होते हैं और जल्दी खत्म हो जाते हैं.”
एक्ट्रेस ने कहा, ”वो समय वाकई सुनहरे दिन थे, जब एकता कपूर जैसे प्रोड्यूसर ऐसे आइकॉनिक शो बनाते थे जो 500, 1000, यहां तक कि 2000 एपिसोड्स तक चलते थे. लेकिन अब समय बदल गया है और दर्शकों की पसंद भी. उनके पास देखने के लिए ढेर सारे चैनल और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स मौजूद हैं. अब सब कुछ टीआरपी पर निर्भर करता है. अगर कोई शो जल्दी अच्छे नंबर नहीं लाता, तो उसे क्रिएटिव होने के बावजूद भी बंद कर दिया जाता है. मैं ‘कृष्णमोहिनी’ शो में काम कर रही थी. सिर्फ तीन महीने हुए थे, और हम तब कहानी का असली प्लॉट भी नहीं दिखा पाए थे, कि तभी चैनल ने शो बंद करने का फैसला ले लिया. अब हालात ऐसे हो गए हैं कि अगर कोई शो 800 एपिसोड तक भी पहुंचता है, तो उसे उतना ही बड़ा माना जाता है जैसे पहले हजार एपिसोड को पूरा करने पर माना जाता था.”
इसके अलावा, जब अशिता से सवाल पूछा गया कि भारतीय टीवी शोज को अक्सर मेलोड्रामैटिक कहा जाता है, और वहीं ओटीटी पर कंटेंट कभी-कभी भ्रमित करने वाला होता है, इस पर उनकी राय क्या है?, तो इस पर उन्होंने कहा, ”हर देश का अपना अलग स्टाइल होता है. हमारी इंडस्ट्री में कहानी कहने का तरीका और भी बेहतर हो सकता है. मैंने एक शो किया था ‘लेडीज स्पेशल’, जो बहुत साधारण और जमीन से जुड़ा हुआ था. उसमें कम मेकअप, नेचुरल लाइटिंग, और असल जिंदगी जैसी कहानियां दिखाई गईं लेकिन दर्शकों ने उस शो को पसंद नहीं किया. वे ग्लैमर, ड्रामा और तमाशा चाहते हैं इसलिए सिर्फ क्रिएटर्स के बदलाव चाहना काफी नहीं है, जब तक दर्शकों की पसंद नहीं बदलेगी, कंटेंट भी नहीं बदलेगा.”
अशिता ने अपने नए टीवी शो ‘प्रेम लीला’ में निभाए नकारात्मक किरदार के बारे में बात की. उन्होंने बताया, ”ऐसे किरदार ज्यादा गहराई वाले होते हैं. एक एक्टर के तौर पर मुझे यह ज्यादा चुनौतीपूर्ण और दिलचस्प लगता है. इसमें अलग-अलग पहलुओं को एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है. जब आप पॉजिटिव रोल निभाते हैं, तो ज्यादातर समय आपको सिर्फ रोते हुए ही दिखाया जाता है. बार-बार रोने वाले सीन करने पड़ते हैं, जो क्रिएटिव चैलेंज नहीं देते.”
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पीके/केआर
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