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“श्रीरामचरितमानस : राजस्थानी काव्य अनुवाद” और “रागरसरंग कुंडलिया” पुस्तकों का लोकार्पण

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उदयपुर, 03 सितम्बर (Udaipur Kiran News): कवि, लेखक, संगीतज्ञ और Rajasthanी भाषा के अनुवादक पुष्कर ‘गुप्तेश्वर’ की कृतियां “ रामचरितमानस : Rajasthanी काव्य अनुवाद” तथा “रागरसरंग कुंडलिया” का लोकार्पण सूचना केंद्र सभागार में साहित्य और संगीत के सुधिजनों की उपस्थिति में हुआ. यह आयोजन नादब्रह्म संस्थान एवं सहज प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ.

लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देव कोठारी (Rajasthanी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष) ने की. मुख्य अतिथि संगीतकार डॉ. प्रेम भंडारी (पूर्व विभागाध्यक्ष, संगीत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय) रहे. विशिष्ट अतिथि के रूप में विजयेंद्रसिंह सारंगदेवोत लक्ष्मणपुरा (पूर्व चेयरमैन, सेंट्रल बैंक उदयपुर-राजसमंद), वरिष्ठ साहित्यकार पुरुषोत्तम ‘पल्लव’, डॉ. जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ और डॉ. कृष्ण ‘जुगनू’ उपस्थित रहे.

कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती और हनुमानजी की छवि पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुई. संचालन प्रमिला शरद व्यास ने किया. उन्होंने नादब्रह्म संस्थान की गतिविधियों और रचनाकार पुष्कर ‘गुप्तेश्वर’ के कृतित्व पर प्रकाश डाला.

समारोह में वक्ताओं ने दोनों पुस्तकों को Rajasthanी साहित्य, भक्ति परंपरा और शास्त्रीय संगीत के लिए महत्वपूर्ण योगदान बताया. डॉ. देव कोठारी ने रामचरितमानस : Rajasthanी काव्य अनुवाद को “Rajasthanी साहित्य जगत की महताऊ पोथी” कहा, जबकि डॉ. प्रेम भंडारी ने रागरसरंग कुंडलिया को शास्त्रीय संगीत के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए अत्यंत उपयोगी बताया.

पुरुषोत्तम पल्लव ने कहा कि पुष्कर गुप्तेश्वर ने गुरु-परंपरा और संत साहित्य की विरासत को आगे बढ़ाते हुए तुलसीदास कृत रामचरितमानस का उत्कृष्ट Rajasthanी अनुवाद प्रस्तुत किया है. डॉ. ज्योतिपुंज ने दोनों कृतियों को “लोकप्रिय और अद्भुत योगदान” कहा. वहीं डॉ. कृष्ण ‘जुगनू’ ने इसे केवल अनुवाद नहीं बल्कि “शास्त्र की पुनर्प्रतिष्ठा” करार दिया और मेवाड़ की रामकाव्य परंपरा का विस्तार बताया.

इस अवसर पर पुष्कर ‘गुप्तेश्वर’ ने रामचरितमानस और रागरसरंग कुंडलिया से कुछ अंश सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया. समारोह में संस्थान की ओर से विशिष्ट साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया. बड़ी संख्या में साहित्य, संगीत और संस्कृति से जुड़े लोग उपस्थित रहे.

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