New Delhi, 14 सितंबर . Supreme court ने देश भर के भिक्षा आश्रित के गृहों की स्थिति में सुधार के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए हैं. यह फैसला दिल्ली के लामपुर भिक्षा गृह में दूषित पानी के कारण हुई मौतों से संबंधित मामले पर दिया गया है.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि इन गृहों को अब दंडात्मक केंद्र नहीं, बल्कि संविधान की मूल भावना के अनुरूप पुनर्वास और गरिमा देने वाले स्थानों में बदला जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, “भिक्षा गृहों को अब ऐसे स्थान के रूप में देखा जाना चाहिए जहां पुनर्प्राप्ति, कौशल विकास और समाज में पुनः एकीकरण की प्रक्रिया हो. ‘गृह’ शब्द अपने आप में सुरक्षा, गरिमा, अपनापन और देखभाल का प्रतीक है.”
Supreme court ने स्पष्ट किया कि ऐसे किसी भी इंतजाम को, जो जेल जैसे हालात बनाता है. जैसे भीड़भाड़, गंदगी, जबरन या मनमाने तरीके से बंद करना, इलाज से इनकार, मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा, या व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर रोक को नीति की विफलता नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा, जो जीवन और गरिमा का अधिकार सुनिश्चित करता है.
कोर्ट ने कहा कि भिक्षा आश्रित गृहों को अब सामाजिक नियंत्रण के उपकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें सामाजिक न्याय के केंद्र के रूप में विकसित करना होगा.
पीठ ने कहा कि देश के भिक्षावृत्ति विरोधी कानून औपनिवेशिक मानसिकता की उपज हैं, जिनका मकसद गरीबी को अपराध मानना था, न कि उसका समाधान निकालना. इस सोच से बाहर आना अब जरूरी है.
Supreme court ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति की 24 घंटे के भीतर मेडिकल जांच अनिवार्य होगी. हर महीने स्वास्थ्य जांच और रोग निगरानी प्रणाली लागू की जाएगी. पीने का साफ पानी, स्वच्छ शौचालय, कीट नियंत्रण और उच्च स्वच्छता मानक सुनिश्चित किए जाएंगे. दो साल में एक बार स्वतंत्र बुनियादी ढांचा ऑडिट अनिवार्य होगा. अधिक भीड़ पर रोक, केवल स्वीकृत क्षमता तक ही निवासी रह सकेंगे. साफ हवा और खुली जगह वाले सुरक्षित घर उपलब्ध कराने होंगे. हर गृह में पोषण विशेषज्ञ नियुक्त होंगे जो भोजन की गुणवत्ता और पोषण मानकों की जांच करेंगे. एक मानकीकृत डाइट चार्ट बनाया जाएगा जिससे पोषण की कमी न हो.
कौशल विकास केंद्र स्थापित होंगे ताकि निवासी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें. एनजीओ और निजी संस्थाओं के साथ साझेदारी कर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे. निवासियों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी सरल भाषा में दी जाएगी.
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के वकील हर तीन महीने में दौरा करेंगे. महिलाओं और बच्चों के लिए अलग और सुरक्षित स्थान सुनिश्चित किया जाएगा. भिक्षावृत्ति में लिप्त पाए गए बच्चों को भिक्षा गृहों में नहीं, बल्कि बाल कल्याण संस्थाओं में भेजा जाएगा. हर भिक्षा गृह में निगरानी समिति होगी जो सालाना रिपोर्ट जारी करेगी.
लापरवाही से मृत्यु होने पर राज्य Government मृतक के परिजनों को मुआवजा देगी और दोषी अधिकारियों पर अनुशासनात्मक या आपराधिक कार्रवाई की जाएगी.
तीन महीने में केंद्र Government को मॉडल गाइडलाइंस बनानी होंगी. छह महीने में सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में इनका पालन अनिवार्य होगा. Supreme court रजिस्ट्री को आदेश दिया गया है कि इस फैसले की कॉपी सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय को भेजी जाए.
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वीकेयू/डीकेपी
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