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2005 में दीपावली के दो दिन पहले दिल्लीवासियों ने देखा था सबसे खौफनाक मंजर, 60 से अधिक लोगों ने गंवाई थी जान

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New Delhi, 29 अक्टूबर . साल 2005, तारीख 29 अक्टूबर. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का हर कोना, हर गली, हर बाजार रोशनी, उम्मीद और खरीददारी की गहमा-गहमी में डूबा हुआ था. पहाड़गंज के मुख्य बाजार से लेकर दक्षिणी दिल्ली के सरोजिनी नगर तक, हर जगह पैर रखने की भी जगह नहीं थी. लोग अपनी मेहनत की कमाई से घर को सजाने, अपनों को तोहफे देने और नए भविष्य की नींव रखने में मशगूल थे.

सरोजिनी नगर के संकरे गलियारों में साड़ियों, गहनों, मिट्टी के दीयों और रंग-बिरंगी लाइटों की दुकानें ग्राहकों से पटी पड़ी थीं. हर चेहरे पर मुस्कान थी, हर आंख में त्योहार का सपना था.

दूसरी ओर, New Delhi रेलवे स्टेशन के पास, पहाड़गंज का बाजार यात्रियों और स्थानीय लोगों से खचाखच भरा था. दिवाली से पहले अपने गांव जाने वाले यात्री स्टेशन के पास ही आखिरी खरीदारी कर रहे थे.

वहीं गोविंदपुरी के डीटीसी बस में यात्रियों की भारी भीड़ थी. ठीक शाम के 5 बजकर 38 मिनट पर, पहाड़गंज बाजार में सबसे पहला धमाका हुआ. यह धमाका इतना जोरदार था कि बाजार की खुशी की आवाजें एक क्षण में कांच के टुकड़ों की तरह बिखर गईं. सिर्फ चीखें और धुएं का गुबार दिख रहा था. दिल्ली अभी इस सदमे से उबर भी नहीं पाई थी कि ठीक 6 बजे, दक्षिणी दिल्ली के गोविंदपुरी इलाके में एक डीटीसी बस में दूसरा धमाका हुआ.

यह धमाका भी उतना ही घातक हो सकता था, लेकिन बस के ड्राइवर कुलदीप सिंह ने तुरंत भांप लिया कि सीट के नीचे रखा लावारिस बैग क्या है. बिना एक पल सोचे, उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए बैग को बस की खिड़की से बाहर फेंक दिया. बस के बाहर धमाका हुआ. कई लोग घायल हुए, लेकिन कुलदीप सिंह के साहस ने बस में सवार 70 से अधिक लोगों की जिंदगी बचा ली.

फिर, ठीक 6 बजकर 5 मिनट पर, आतंक का तीसरा और सबसे क्रूर प्रहार सरोजिनी नगर बाजार में हुआ. यहां की भीड़ पहाड़गंज से भी सघन थी. दीपावली से पहले धनतेरस पर लोग खरीदारी कर रहे थे. तभी, एक ब्लास्ट हुआ. लोग बताते हैं कि यह धमाका इतना भयानक था कि जिस दुकान के सामने विस्फोट हुआ था, उसके काउंटर पर बैठे शख्स का शरीर दो हिस्सों में मिला. यहां 50 से अधिक लोगों की जान चली गई.

पीड़ितों में वो परिवार थे जो दीये और मोमबत्तियां खरीद रहे थे, वो बच्चे जो खिलौनों की जिद कर रहे थे और वो दुकानदार जो अपने ग्राहकों की सेवा में लगे थे.

धनतेरस के दिन दिल्ली के इन तीन सीरियल ब्लास्ट में 60 से ज्यादा मौतें हुई थीं और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.

हमले के पीछे की सबसे बड़ी वजह बताई जाती है कि दिल्ली के लाल किले में 22 दिसंबर 2000 को जो हमला किया गया था, उसके मुख्य आरोपी अफजल गुरु और अन्य आरोपियों की सजा पर 29 अक्टूबर 2005 को कड़कड़डूमा स्थित एडिशनल सेशन जज ओ पी सैनी की अदालत में फैसला होना था.

Police स्टेशन में अंजान व्यक्ति ने फोन कर कहा था कि अगर हमारे साथियों को सजा पर फैसला सुनाया गया तो हम कोर्ट परिसर में बम धमाका कर देंगे, जिसके बाद कोर्ट परिसर की सिक्योरिटी तुरंत बढ़ा दी गई. कोर्ट में तकनीकी खराबी के कारण बिजली न होने की वजह से उस दिन कोई फैसला नहीं सुनाया गया, लेकिन उसी शाम दिल्ली में तीन सिलसिलेवार बम धमाकों ने दहला दिया.

वीकेयू/पीएके

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