Mumbai , 24 अक्टूबर . शारदा राजन अयंगर, जिन्हें पेशेवर रूप से सिर्फ शारदा के नाम से जाना जाता है, भारतीय संगीत जगत की सबसे यादगार पार्श्व गायिकाओं में से एक थीं. उनकी आवाज में एक अनोखी मिठास और जादू था, जो सुनने वाले को बस मंत्रमुग्ध कर देती थी. 1960 और 1970 के दशक में उन्होंने अपने गानों से Bollywood के हर दर्शक का दिल जीत लिया. उनका सफर एक विदेशी शहर तेहरान में होने वाली भारतीय पार्टियों से शुरू हुआ.
शारदा का जन्म 25 जून 1945 को तमिलनाडु में हुआ था. छोटी उम्र में ही शारदा हिंदी गीतों को तमिल में लिखती और अकेले में गुनगुनाती थीं. यही छोटी-छोटी आदतें उनकी संगीत के प्रति दीवानगी बन गईं. उनका परिवार बाद में तेहरान चला गया, जहां भारतीय समुदाय की पार्टियों में वह अक्सर गाया करती थीं.
तेहरान में ही एक खास मौके पर शारदा की जिंदगी बदल गई. एक पार्टी में राज कपूर आए थे. शारदा ने अपनी आवाज में कुछ गाने पेश किए. राज कपूर उनकी आवाज सुनकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शारदा से कहा, ”आपकी आवाज बहुत खास है. आप Mumbai आकर मुझसे जरूर मिलना.”
यही मुलाकात शारदा के करियर का पहला बड़ा मोड़ बन गई. Mumbai आकर शारदा की मुलाकात संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन से हुई. उन्होंने शारदा के लिए गाने की ट्रेनिंग की व्यवस्था की. इसके अलावा उन्होंने गुरु जगन्नाथ प्रसाद और मुकेश से भी संगीत की तालीम ली.
शारदा ने अपने Bollywood करियर की शुरुआत 1966 में फिल्म ‘सूरज’ से की. उनका गीत ‘तितली उड़ी’ बड़ा हिट रहा और इसे लोग आज भी याद करते हैं. इस गीत की सफलता ने उन्हें Bollywood में पहचान दिलाई. इसके बाद उन्होंने ‘गुमनाम’, ‘शतरंज’, ‘अराउंड द वर्ल्ड’ जैसी फिल्मों में गाने गाए. उनकी आवाज ही नहीं, उनकी भावनाओं ने भी हर गाने को खास बना दिया.
1969 से 1972 तक शारदा लगातार फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित होती रहीं. 1970 में फिल्म ‘जहां प्यार मिले’ के गीत ‘बात ज़रा है आपस की’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इतना ही नहीं, उनके गीतों ने Bollywood में पार्श्व गायिका की जगह को और भी मजबूत किया. ‘तितली उड़ी’ के बाद फिल्मफेयर ने पुरुष और महिला पार्श्व गायकों के लिए अलग-अलग पुरस्कार शुरू किए.
शारदा ने अपने करियर में मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, आशा भोसले और येसुदास जैसे दिग्गज गायकों के साथ गाना गाया. उन्होंने वैजयंतीमाला, साधना, हेमा मालिनी, रेखा, शर्मिला टैगोर और मुमताज जैसी अभिनेत्रियों के लिए अपनी आवाज दी. 1971 में उन्होंने ‘सिज्लर्स’ नामक पॉप एल्बम रिकॉर्ड किया, जो किसी भारतीय महिला द्वारा रिकॉर्ड किया गया पहला पॉप एल्बम था. 2007 में उन्होंने मिर्जा गालिब की गजलों पर आधारित एल्बम ‘अंदाज-ए-बयां’ रिलीज किया, जिसे संगीत प्रेमियों ने खूब सराहा.
शारदा की आखिरी फिल्म गायकी 1986 में ‘कांच की दीवार’ में सुनी गई. उन्होंने लगभग 20 सालों तक भारतीय संगीत जगत में अपनी खास पहचान बनाई. उनके करियर के दौरान उन्होंने चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते और कई अन्य पुरस्कारों के लिए नामांकित भी रहीं. 14 जून 2023 को शारदा का निधन हो गया. वह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं.
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पीके/एएस
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