New Delhi, 19 अगस्त . इतिहासकार और शिक्षाविद् राम शरण शर्मा की याद में दो दशक से अधिक समय बीत जाने पर भी एक घटना उनकी उदार सोच और जिज्ञासु स्वभाव की मिसाल मानी जाती है. यह घटना उनके जीवन से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जब उनकी कलम की ताकत को पन्नों में ही कैद कर दिया गया.
राम शरण शर्मा एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी इतिहासकार थे. प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व उनके अंतर्संबंधों, पर उनकी समान पकड़ थी. उन्होंने समाज को हकीकत से रूबरू कराया था, लेकिन कुछ रचनाओं के लिए उन पर प्रतिबंध तक लग गए थे.
राम शरण शर्मा ने 100 से ज्यादा पुस्तकें और मोनोग्राफ लिखे, जिनका दुनिया भर की एक दर्जन भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. उन्हीं में से एक उनकी 1977 की पुस्तक ‘प्राचीन भारत’ का नाता विवादों से रहा.
उस समय देश में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता सरकार थी. 1977 में आई पुस्तक पर विवाद इतना गहरा था कि अगले साल ही 1978 में उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस किताब में महाभारत में कृष्ण की ऐतिहासिक भूमिका पर राम शरण शर्मा के अपने विचार थे, जिसके कारण यह पुस्तक विवादों में घिरी.
अयोध्या विवाद पर उन्होंने बहुत कुछ लिखा था, जिसको लेकर देशभर में बहस छिड़ गई थी.
‘आर. एस. शर्मा : एक प्रखर इतिहासकार की विरासत’ को याद करते हुए शिवाकांत तिवारी ने ‘रिसर्च इंडिया पब्लिकेशन’ की किताब में लिखा, “राम शरण शर्मा ने कभी भी धार्मिक मान्यताओं को ऐतिहासिक प्रमाणों के बिना स्वीकार नहीं किया. उनकी पुस्तक ‘प्राचीन भारत’ (1977) को 1978 में प्रतिबंधित कर दिया गया था. उन्होंने इसके बचाव में ‘इन डिफेंस ऑफ एंशिएंट इंडिया’ (1979) लिखी.”
शिवाकांत तिवारी ने अपनी किताब में लिखा, “आर्य विवाद पर उन्होंने स्पष्ट मत रखा कि आर्य बाहर से आए थे और उनका हड़प्पा सभ्यता से कोई लेना-देना नहीं था. इस पर भी तीखी प्रतिक्रियाएं और बहसें हुईं, लेकिन वे हमेशा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ऐतिहासिक साक्ष्य के आधार पर खड़े रहे.”
राम शरण शर्मा मार्क्सवादी दृष्टिकोण के इतिहासकार थे, जिन्होंने ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ के सिद्धांत को प्राचीन भारत के अध्ययन में अपनाया. उन्होंने अपनी लेखनी में इतिहास के विभिन्न पहलुओं को छुआ है, जैसे कि ‘आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता’ और ‘शूद्रों का प्राचीन इतिहास’ से लेकर ‘एप्लाइड साइंसेस एंड टेक्नोलॉजी’ और ‘अर्ली मेडीएवल इंडियन सोसाइटी: ए स्टडी इन फ्यूडलाइजेशन,’ आदि में बहुत विविधता है.
प्राचीन इतिहास से समसामयिक घटनाओं को जोड़कर देखने में उन्हें महारथ हासिल थी. उनकी लिखी प्राचीन इतिहास की किताबें देश की उच्च शिक्षा में बहुत अहमियत रखती हैं.
उनके जीवनपर्यंत योगदान के लिए उन्हें ‘केम्प्वेल मेमोरियल गोल्ड मेडल सम्मान’, ‘हेमचंद रायचौधरी जन्मशताब्दी स्वर्ण पदक सम्मान’, और ‘डी लिट’ जैसे सम्मानों और उपाधियों से विभूषित किया गया. इस महान इतिहासकार और शिक्षाविद का 20 अगस्त 2011 को पटना में निधन हो गया.
–
डीसीएच/एबीएम
You may also like
16 की उम्र में मुस्लिम लड़की ने की थी शादी, सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया सही, एनसीपीसीआर की याचिका खारिज
पद्मश्री श्रीनाथ खंडेलवाल की दुखद कहानी: परिवार की उपेक्षा में वृद्धाश्रम में बिताई अंतिम दिन
Rajiv Gandhi की जयंती पर गहलोत ने प्रदेशवासियों से की ये अपील, मोदी सरकार पर लगा दिया है ये आरोप
MP Rain Alert: 24 घंटे बाद 23 जिलों में भारी से अति भारी बारिश मचाएगी तबाही, IMD का ऑरेंज अलर्ट, जानें ताजा अपडेट
उसने कुछ गलत नहीं किया, उपकप्तानी से हटाने की वजह बताओ... अक्षर पटेल के सपोर्ट में उतरा भारतीय दिग्गज