रोम, 19 अप्रैल . अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ता का दूसरा दौर शनिवार को इटली में शुरू हुआ. दोनों पक्ष तेहरान के असैन्य परमाणु कार्यक्रम और देश के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को समाप्त करने पर चर्चा करेंगे.
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची और मध्य पूर्व में अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के नेतृत्व में यह वार्ता रोम स्थित ओमान के दूतावास की ओर से आयोजित की जा रही है.
इससे पहले शुक्रवार को मॉस्को में अपने रूसी समकक्ष के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए अराघची ने कहा कि तेहरान शनिवार को होने वाली वार्ता को गंभीरता और पूरे दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ाएगा, भले ही दूसरे पक्ष के इरादों के बारे में ‘गंभीर संदेह’ हो. उन्होंने कहा, “हम अमेरिकी पक्ष के विचार सुनने का इंतजार कर रहे हैं. अगर पर्याप्त गंभीरता और दृढ़ संकल्प है, तो संभव है कि समझौता हो जाए.”
अराघची ने कहा, “हम ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पूरी तरह तैयार हैं, अगर दूसरी तरफ भी ऐसी ही इच्छाशक्ति है और वे अनुचित व अवास्तविक मांगें नहीं करते हैं, तो मेरा मानना है कि समझौता संभव है.”
विदेश मंत्री ने ईरान और विश्व शक्तियों के बीच 2015 के परमाणु समझौते में रूस की भूमिका की तरीफ की. उन्होंने उम्मीद जताई कि मॉस्को किसी भी नए समझौते में अपनी सहायक भूमिका जारी रखेगा.
इस बीच, शुक्रवार को पेरिस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने उम्मीद जताई कि ईरान के साथ बातचीत फलदायी होगी और कुछ परिणाम निकल सकता है.
रुबियो ने कहा, “राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं होगा. हम उम्मीद कर रहे हैं कि बातचीत जारी रहेगी और इससे कुछ नतीजा निकलेगा. हम सभी शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान चाहते हैं. यह कुछ ऐसा होना चाहिए जो ईरान को न सिर्फ अभी बल्कि भविष्य में परमाणु हथियार रखने से रोके, न कि केवल 10 वर्षों के लिए.”
पिछले सप्ताह मस्कट में आयोजित वार्ता के पहले दौर में, अराघची ने ओमानी विदेश मंत्री सैय्यद बद्र बिन हमद बिन हमूद अलबुसैदी की मदद से विटकॉफ के साथ ‘अप्रत्यक्ष’ चर्चा की. बातचीत ईरान के परमाणु कार्यक्रम और अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने की संभावना पर केंद्रित थी.
वार्ता का प्रस्ताव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रखा था. उन्होंने ईरान को धमकी दी थी कि अगर तेहरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर वाशिंगटन के साथ समझौता नहीं करता है तो उसे बमबारी और द्वितीयक शुल्क का सामना करना पड़ सकता है.
ईरान ने 2015 में विश्व शक्तियों के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे औपचारिक रूप से ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) के रूप में जाना जाता है. जेसीपीओए को ईरान परमाणु समझौता या ईरान डील के नाम से भी जाना जाता है. इसके तहत प्रतिबंधों में राहत और अन्य प्रावधानों के बदले में ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने पर राजी हुआ था.
इस समझौते को 14 जुलाई 2015 को वियना में ईरान, पी5+1 (संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य- चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका- प्लस जर्मनी) और यूरोपीय संघ के बीच अंतिम रूप दिया गया.
अमेरिका ने 2018 में समझौते से खुद को अलग कर लिया और ‘अधिकतम दबाव’ की नीति के तहत प्रतिबंध लगा दिए. परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में पर्याप्त प्रगति नहीं हुई है.
–
एमके/
The post first appeared on .
You may also like
ईस्टर के मौके़ पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, पीएम मोदी और राहुल गांधी ने क्या कहा?
मंदिर में महिलाओं को खुले बाल लेकर क्यों नहीं जाने दिया जाता? जाने इसकी असली वजह ∘∘
इस महिला को सेक्स की इच्छा हुई तो कुत्ते से बना डाला संबंध, सोशल मीडिया पर भी वीडियो किया पोस्ट ∘∘
SBI Amrit Vrishti FD Scheme 2025: New Deposit Plan Offers Up to 7.75% Interest — Know Details, Benefits & How to Invest
मासिक राशिफल : 20 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच इन राशियों के जीवन बन रहा राजयोग, मिलेगा विशेष लाभ होंगे मालामाल…