चीन भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश तो कर रहा है, अगर फौरी तौर पर देखें तो ऐसा ही कुछ फिल गुड सिचुएशन नजर आएगा। लेकिन चीन की मंशा को लेकर स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट हमेशा भारत को आगाह और सचेत करते रहे हैं।
चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके पीछे1962 वाली घटना का भी जिक्र किया जाता है। हिंदी-चीनी भाई-भाई की आड़ में दगाबाजी का खंजर चीन के द्वारा भारत की पीठ पर घोंपा गया था। चीन ने भारत पर हमला किया और आज भी हमारी 38-39 हजार स्कायर किलोमीटर जमीन पर कब्जा जमाए बैठा है। चीन ने ऐसी ही कोशिश 2020 में भी की। कोरोना नामक महामारी से हैरान-परेशान दुनिया इसके इलाज तलाह रही थी। लेकिन मक्कार चीन इसकी आड़ में भारत की जमीन को हथियाने की कोशिश की। नतीजन गलवान घाटी में ड्रैगन के नापाक मंसूबों के आगे हिंद की सेना मजबूती के साथ डट खड़ी हुई।
वियतनाम युद्ध के बाद पहली बार इसमें चीन की पीएलए को शहादत झेलनी पड़ी। हालांकि इस झड़प में भारत के सैनिक भी शहीद हुए। कुल मिलाकर कहे कि अगर जानकार चीन पर भरोसे की बात को लेकर हमेशा आगाह करते रहते हैं, वो अपनी जगह बिल्कुल ठीक भी है। चीन की साजिशों को बहुत ही अच्छी तरह से समझने वाले अब तिब्बत सरकार के पूर्व राष्ट्रपति तिब्बत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. लोबसांग सांगे ने कुछ ऐसे खुलासे किए हैं जो बिल्कुल चौंकाने वाले हैं।
उनका कहना है कि चीन की चालें केवल सीमाओं तक सीमित नहीं है। बल्कि सीधे भारत की सत्ता पर वार करने लगी है। उनका ये कहना है कि दिल्ली स्थित चीनी दूतावास न केवल भारतीय नेताओं और पत्रकारों को साधने की कोशिश कर रहा है, जिनमें यूट्यूबर्स भी शामिल हैं। उनके सहारे मोदी सरकार के तख्तापलट करने की साजिश रची जा रही है। चीनी दूतावास इस कोशिश में है कि मोदी सरकार का तख्तापलट किया जाए और इसके लिए वो कई तरह के षड़यंत्र रच रहे हैं। मीडिया का भी इसमें इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें कई बड़े पत्रकार समेत कई यूट्यूबर्स शामिल हैं। सारे दावे तिब्बत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. लोबसांग सांगे ने एक इंटरव्यू के दौरान किए हैं।
पत्रकारों को प्रभावित करने, बड़े बड़े बिजनेसमैन को भी लालच दिया जा रहा है। मीडिया में पैसा डालकर नैरेटिव को बदलने का खेल बीजिंग खेल खेल रहा है। भारत के पड़ोस पर नजर डालेंगे तो चीन के पैसों से कुछ सरकारें खड़ी हैं। पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देश इसका उदाहरण हैं। बीजींग का खेल सिर्फ व्यापार नहीं है बल्कि इसकी आड़ में सत्ता पलटने का भी खेलता है। ऐसा ही खेल वो भारत में भी खेलने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने बताया कि कैसे नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और पाकिस्तान में चीन ने सत्ताधारी वर्गों को अपने पक्ष में कियाहै। उनके शब्दों में ये एलीट कैप्चर की मिसाल है। डॉक्टर सांगे ने ये भी बतायाकि ये रणनीति दक्षिण एशिया से आगे तक फैली है। उन्होंने कहा कि मैंने यूरोप में ऐसे मंत्री देखे हैं जिन्होंने चीन की तारीफ की और बाद में चीनी कंपनियों में डायरेक्टर और वह 100,000 डॉलर से लेकर 888,000 डॉलर तक की सालाना तनख्वाह पर। डॉक्टर सांगे ने भारत के सभी दलों के नेताओं, व्यापारियों और पत्रकारों को अलर्ट रहने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि चीन को फर्क नहीं पड़ता कि वह किसे खरीदता है, जब तक वह उनके एजेंडे को आगे बढ़ाता है।
डॉ. सांगे ने आगे तर्क दिया कि बीजिंग के प्रभावकारी अभियान भारत को नियंत्रित करने के उसके व्यापक भू-राजनीतिक लक्ष्य से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि चीन मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल का समर्थन क्यों कर रहा है? वे भारत पर हमला करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को क्यों रोक रहे हैं? क्योंकि वे भारत को घेरना चाहते हैं और दक्षिण एशिया पर अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। चीन के आर्थिक प्रभाव की तुलना राजनीतिक चालाकी से करते हुए, उन्होंने भारत के व्यापार घाटे पर प्रकाश डाला। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत चीन से 113 अरब डॉलर का सामान खरीदता है, लेकिन केवल 14 अरब डॉलर का बेचता है। यह 99 अरब डॉलर का घाटा है। इसका मतलब है कि भारत में कम कारखाने, कम विनिर्माण और कम नौकरियाँ होंगी। चीन के साथ जुड़ाव न केवल असंतुलित है, बल्कि खतरनाक भी है।
डॉ. सांगे ने हेनरी किसिंजर के उस लोकप्रिय सिद्धांत पर भी निशाना साधा कि चीन के साथ व्यापार से उसका लोकतंत्रीकरण होगा। उन्होंने कहा कि पश्चिम ने 30 साल तक इसी भ्रम में निवेश किया। लोकतांत्रिक बनने के बजाय, चीन और अधिक विरोधी हो गया है। मुझे उम्मीद है कि भारत यह गलती नहीं दोहराएगा। बहरहाल, सीमा पर पहले से ही तनाव चरम पर है, ऐसे में डॉ. सांगे के शब्द एक भयावह चेतावनी हैं कि चीन की भारत के लिए चुनौती सिर्फ़ सैन्य ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक भी है।
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