Next Story
Newszop

भारत और पाकिस्तान के सीज़फ़ायर में अमेरिकी दख़ल ने क्या कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया?

Send Push
Getty Images भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से ही कश्मीर एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है

भारत और पाकिस्तान के संघर्ष के बाद इसी पर चर्चा होती रही कि इसमें आखिर किस पक्ष का हाथ ऊपर रहा, किसने क्या हासिल किया और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों के क्या मतलब निकाले जाने चाहिए?

भारत और पाकिस्तान की ओर से संघर्ष रोके जाने की घोषणा होती, इससे पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ऐलान कर दिया कि दोनों पक्ष इसके लिए राज़ी हो गए हैं और जल्द ही बातचीत करेंगे.

कई मौकों पर उनके या उनके प्रशासन की ओर से ये कहा गया कि उन्होंने हस्तक्षेप करके दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम करवाया. पाकिस्तान ने इसके लिए खुलकर अमेरिका को धन्यवाद दिया.

मगर भारत ने हर बार कहा कि ये भारत और पाकिस्तान के बीच की बात है और ये संघर्ष विराम स्थाई तौर पर संघर्ष रुकने का संकेत नहीं है.

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत और पाकिस्तान के संघर्ष के बारे में कहा था कि 'इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है.'

तो आख़िर दो दिनों में ऐसा क्या बदल गया कि अमेरिका लेना-देना नहीं होने से मध्यस्थता के चलते संघर्ष रुकने के दावे तक आ गया?

भारत ने खुलकर अमेरिका की बातों का खंडन क्यों नहीं किया? क्या ट्रंप इस मसले में आगे मध्यस्थ की भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं? संघर्ष विराम कितना टिकेगा?

सिंधु जल संधि के निलंबित रहने, वीज़ा पर लगी रुकावटों और दोनों देशों के बीच आवाजाही रुके रहने का आगे इस संघर्ष विराम पर क्या असर होगा?

क्या कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन रहा है और जो भी ट्रंप कह रहे हैं क्या वो अपनी छवि चमकाने की कोशिश है?

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सवालों पर चर्चा की.

इन मुद्दों पर चर्चा के लिए पूर्व राजनयिक वीना सीकरी, ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट और लंदन में किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर हर्ष पंत और आंतरिक सुरक्षा और आतंकवाद जैसे विषयों पर काम कर रहीं फ़ोर्स मैगज़ीन की एडिटर ग़ज़ाला वहाब शामिल हुईं.

image BBC भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम टिक पाएगा? image ANI भारत के मिसाइल हमले में क्षतिग्रस्त मरकज़ तैयबा

पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शुरू हुए संघर्ष पर 10 मई को विराम तो लग गया लेकिन एक सवाल चर्चा में है कि आख़िर यह कब तक टिकेगा?

फ़ोर्स मैगज़ीन की एडिटर ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "इसके तीन पिलर्स हैं, जिसके आधार पर यह टिक सकता है या न टिके. अभी पाकिस्तान को अमेरिका का दख़ल चाहिए था और उसे वह मिल गया. वह भारत से हर मामले पर बातचीत के लिए तैयार हैं. अमेरिकी हस्तक्षेप पाकिस्तान के लिए फ़ायदेमंद रहा."

उन्होंने कहा कि अभी पाकिस्तान की तरफ़ से कोई ऐसी हरकत नहीं होगी कि फिर बात बिगड़ जाए और पाकिस्तान के ऊपर ये इल्ज़ाम आ जाए की वो हिंसा का रास्ता अपना रहा है.

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "दूसरा इंडिया फ़िलहाल जस का तस स्थिति रखना चाहेगा क्योंकि उसने कह दिया है कि वह जो करना चाहता था उसमें वह कामयाब रहा. जब तक पाकिस्तान उकसाता नहीं भारत संघर्ष में नहीं उतरेगा."

वह कहती हैं, "तीसरे चीन की भी पाकिस्तान को राय है कि अभी इस मामले में रुक जाते हैं और देखते हैं कि आगे क्या होता है? इस बीच सहयोग, सैन्य सहयोग और संसाधनों की आपूर्ति जारी रहेगी."

image BBC अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दोनों देशों के बीच सीज़फ़ायर को लेकर घोषणा की थी अमेरिका ने क्यों लिया यूटर्न? image Getty Images भारत ने अमेरिका की मध्यस्थता से इंकार कर दिया है

भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिका का शुरुआती रुख़ क़रीब 50 घंटे में ही बदल गया. आख़िर ऐसा क्या हुआ कि वह दोनों देशों के बीच मध्यस्थता का दावा करते नज़र आए.

लंदन में किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, "ट्रंप प्रशासन ने शुरू से ही वैश्विक मामलों में तटस्थ रहने की कोशिश की. मध्य पूर्व और यूक्रेन युद्ध में शुरू से ही यह दिखाने की कोशिश की कि वह आएंगे तो यह फ़टाफ़ट ख़त्म हो जाएगा."

उन्होंने कहा, "ट्रंप प्रशासन किसी मसले में पड़ने के बजाय अपना मामला सुलझाना चाहता है. वह वैश्विक मामलों में पीछे हटकर अपना पूरा ध्यान हिंद और प्रशांत क्षेत्र पर रखना चाहता है."

पंत ने कहा कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिका ने पहले तो पारंपरिक रुख़ अपनाया लेकिन जब पाकिस्तानी एयरबेस निशाना बना तो फिर रणनीति बदल गई.

प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, "पाकिस्तान और अमेरिका के बीच पर्दे के पीछे पाकिस्तान का पक्ष रखने की बात तय हुई और भारत का पक्ष था कि डीजीएमओ को जब तक फ़ोन नहीं जाएगा संघर्ष विराम नहीं होगा. इस तरह एक प्रकिया बनी और संघर्ष का विराम हो गया."

image BBC ट्रंप का बयान
क्या वैश्विक होगा जम्मू-कश्मीर मामला? image BBC News Urdu भारत के हमले में मुरीदके की इमारत को भी निशाना बनाया गया था

कश्मीर मामलों को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने बयान दिए हैं. पाकिस्तान ये चाहता ही था कि कश्मीर का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में आए तो क्या कश्मीर का मुद्दा वापस वैश्विक केंद्र में आ गया है?

पूर्व राजनयिक वीना सीकरी कहती हैं, "बिल्कुल नहीं. दुनिया के सामने ये बात रखी जानी चाहिए कि ये पहलगाम में हुआ हमला एक आतंकी हमला था. ये हमला एक्ट ऑफ़ वॉर था. इसकी शुरुआत यहां से हुई है और भारत ने 7 मई को जो किया वह इसका ही जवाब है."

उन्होंने कहा, "5 अगस्त 2019 के बाद जब से आर्टिकल 370 को हटाया गया जम्मू-कश्मीर का मुद्दा भी खत्म हो गया. अब एक ही मुददा है कि पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर वापस कैसे आएगा? इस पर हम बात करने को तैयार हैं."

image BBC

वह कहती हैं कि 'पता नहीं कैसे अंतरराष्ट्रीयकरण की बात हो रही है? भारत के अन्य राज्यों की तरह ही जम्मू-कश्मीर भारत का राज्य है. इस बारे में कोई बात हो ही नहीं सकती.'

वीना सीकरी कहती हैं, "ट्रंप अच्छी तरह जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत का क्या रुख़ है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस पर कोई चर्चा नहीं होगी."

आईएमएफ़ पैकेज क्यों नहीं रोक पाया भारत? image Getty Images आईएमएफ़ ने पाकिस्तान को 9 मई को क़रीब एक अरब डॉलर का फ़ंड जारी किया है

भारत आईएमएफ़ का सदस्य है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा सुनते आ रहे हैं कि भारत ने अपना प्रभाव बढ़ाया है. फिर भी पाकिस्तान के आईएमएफ़ पैकेज को भारत क्यों नहीं रोक पाया?

वीना सीकरी कहती हैं, "भारत ने वोटिंग में भाग नहीं लिया है और आईएमएफ़ में ऐसा करना एक बहुत बड़ी बात होती है. वहां नेगेटिव वोटिंग सिस्टम नहीं है. उम्मीद है कि इसका बहुत फ़र्क ज़रूर पड़ेगा."

सीकरी कहती हैं, "प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा है कि आतंक के साथ बातचीत नहीं हो सकती है. ये पूरे देश की ज़िम्मेदारी है कि वह देखें की पाकिस्तान ऐसा देश है जो आतंकवादियों की मदद करता है."

वह कहती हैं कि 'उनके पड़ोसी मुल्क अफ़ग़ानिस्तान ने भी उनका साथ छोड़ दिया है. अब पूरी दुनिया को ये कोशिश करनी चाहिए की वो पाकिस्तान का हाथ रोकें कि वो क्यों आतंकी हमले करते हैं?'

नॉन स्टेट ऐक्टर्स को क्या मैसेज गया होगा? image Getty Images पाकिस्तान की एक रैली में सैयद सलाउद्दीन और हाफ़िज़ मुहम्मद सईद (फ़ाइल फ़ोटो)

भारत और पाकिस्तान के बीच जो संघर्ष विराम हुआ है उसका पाकिस्तान ही नहीं बल्कि नॉन स्टेट ऐक्टर्स को क्या मैसेज गया होगा?

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण 1948 और 1949 से ही हो गया है. कश्मीर के एक हिस्से पर चीन तो एक हिस्से पर पाकिस्तान का कब्ज़ा है. ऐसे में कश्मीर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का विवाद भी है."

वहाब कहती हैं, "प्रधानमंत्री मोदी जब से सत्ता में आए हैं तब से कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय मंच नहीं है जहां उन्होंने ये बात न उठाई हो. वो यूएन में भी इसे उठा चुके हैं. हर देश के साथ द्विपक्षीय बयानों में भी यह मुददा बना है."

वहाब कहती हैं, "पाकिस्तानी प्रॉक्सी वॉर से पहले ही कश्मीर के लोग ख़िलाफ़ हो चुके थे. पाकिस्तान ने इसका फायदा उठाया और इसमें नॉन स्टेट एक्टर्स लश्कर और जैश सहित उनकी शाखाएं आती गईं."

उन्होंने कहा कि जब तक राजनीतिक ज़रूरत और परेशानी की जड़ अपनी जगह मौजूद है आप कुछ भी करते रहिए कोई ख़ास असर नहीं होगा.

वहाब कहती हैं, "अगर ऐसा नहीं होता तो करीब 35 के ऊपर सालों से हमारी फौज इन्हीं नॉन स्टेट ऐक्टर्स के साथ जूझ रही है. अगर उनको ग्राउंड सपोर्ट नहीं मिल रहा होता तो क्या अभी तक हमारी फौज उन्हें हटाने में कामयाब नहीं हो पाती?"

image BBC पहलगाम हमले के बाद पीएम मोदी का बयान क्या कश्मीर में घट रहा है नॉन स्टेट ऐक्टर्स को समर्थन? image Getty Images पहलगाम हमले के बाद जम्मू कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था अलर्ट पर है

भारत सरकार कह रही है कि चरमपंथ की घटनाओं में कमी आई है. इसके क्या मायने हैं?

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "पहली बात अगर 2019 के बाद स्थिति सामान्य हो गई तो कश्मीर का मुद्दा भी ख़त्म हो गया. फिर आपने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट क्यों नहीं हटाया?"

वहाब कहती हैं, "अगर स्थिति सामान्य होती तो अतिरिक्त बल भेजने की क्या ज़रूरत थी? तीसरी बात आपने उसे डिमोट करके यूनियन टेरिटरी बनाया. अभी तक उसे राज्य घोषित नहीं किया."

उन्होंने कहा कि आपने चुनाव कराए हैं और मुख्यमंत्री भी निर्वाचित है लेकिन उसके पास न तो कोई शासन व्यवस्था है और न ही उसके पास कानून व्यवस्था है.

"तो ये कुछ पैरामीटर्स हैं. आप इनसे जज कर सकते हैं कि स्थिति कितनी सामान्य है या नहीं है."

image BBC
क्या अमेरिका की पॉलिसी में बदलाव आया है? image Getty Images राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया था

अमेरिका पहले भी हर संघर्ष से ख़ुद को अलग रखता था लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि बहुत ही पब्लिक पोस्चरिंग हो रही है. तो क्या अमेरिका की पॉलिसी में बदलाव आया है?

प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, "राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले कार्यकाल में इमरान ख़ान के बगल में बैठकर कहा था कि मैं कश्मीर में मध्यस्थता के लिए तैयार हूँ. यह बात वह पहली बार नहीं कह रहे हैं."

पंत कहते हैं, "एक दशक से अमेरिकी विदेश नीति में जो बदलाव आया है वो ये है कि वह चीन के साथ अपने रिश्तों को किस तरह गढ़े? शीत युद्ध की तरफ़ जा रहे रिश्ते को वह कैसे मैनेज करे?"

पंत कहते हैं, "भारत जब बहुत कमज़ोर देश था तब भारत ने उस समय कश्मीर में मध्यस्थता करने की अनुमति दुनिया को नहीं दी तो आज तो सभी क्षमताएं मौजूद हैं. अमेरिका की विदेश नीति और ट्रंप अपने ढर्रे पर चल रहे हैं. भारत अपनी स्थितियों के अनुसार आगे बढ़ेगा."

image BBC सीज़फ़ायर की घोषणा करते हुए जब विक्रम मिसरी बोले भारत को खुलकर क्यों नहीं मिला समर्थन? image Getty Images पिछले कई साल से कश्मीर के मुद्दे पर तुर्की पाकिस्तान का समर्थन करता आया है

प्रधानमंत्री मोदी ये कहते रहे हैं कि बहुत सारे देशों से संबंध अच्छे हुए हैं, इसके बावजूद भी भारत को बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन क्यों नहीं मिला?

प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, "अगर कोई आपसी समझौता नहीं है तो ऐसे मसलों पर कोई भी देश एकतरफा बयान नहीं देता है. भारत ने भी किस देश के साथ खड़े होकर कहा कि ये नहीं होना चाहिए?"

पंत कहते हैं, "आतंकवाद का मुद्दा जहां भी आता है भारत स्पष्ट रूप से कहता है कि यह ग़लत है. पहलगाम हमले में हमें पूरी दुनिया से समर्थन मिला."

वह बताते है कि जब बात युद्ध तक पहुंची तो सभी ने अपने अनुसार तय किया. ये बड़ी रणनीति नहीं है और ऐसा होता ही है.

पंत कहते हैं, "मैंने बहुत ज़्यादा ऐसे देश देखे नहीं जो खुलकर खड़े हो जाते हैं जब तक कि आपके उस देश के साथ सीधा रिश्ता या फिर कोई गठबंधन न हो."

सीज़फ़ायर से कश्मीर में क्या बदल जाएगा? image Getty Images जम्मू कश्मीर में हर जगह पहलगाम हमले का विरोध किया गया

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के बाद कश्मीर में क्या बदलाव होने जा रहा है?

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "पहलगाम हमले को लेकर कश्मीर पूरी तरह बंद रहा क्योंकि उन्हें भी दिख रहा था कि यह बहुत बुरा और अमानवीय था."

वहाब कहती हैं, "वह जानते हैं इसका पर्यटन पर बड़ा असर पड़ेगा. वो हैवान नहीं हैं कि इसका समर्थन करें."

वहाब कहती हैं कि हालत अगर बेहतर हो जाएंगे तो सब अपने आप ही सही हो जाएगा. जैसे 2005 से लेकर 2007 में हुआ था.

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "उस समय भारत और पाकिस्तान पर्दे के पीछे बात कर रहे थे. केंद्र सरकार त्रिपक्षीय वार्ता की तरह राज्य और हुर्रियत से बात कर रही थी."

कश्मीर में कैसे हैं हालात? image Getty Images पर्यटन विभाग के मुताबिक करीब 35 लाख पर्यटकों ने 2024 में जम्मू कश्मीर का भ्रमण किया

पाकिस्तान के साथ वार्ता से जब कोई हल नहीं निकला तो 2019 में रुख़ बदल गया. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया. क्या चीज़ें बेहतरी की तरफ़ नहीं जा रही हैं?

ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, "आपकी पहल पर जब लोग ख़ुद आकर जुड़ते हैं. उन्हें लगे कि ये करने से फायदा होगा, हम आगे बढ़ेंगे तो फिर बात बनती है."

वहाब कहती हैं कि आप ही बताइए पर्यटन को छोड़कर किस उद्योग में भागेदारी है. ये तो कश्मीर में कभी नहीं रुका है. पहले कम जगह लोग जाते थे कई जगहें खुल गईं तो पर्यटक बढ़ गए हैं.

ग़ज़ला वहाब कहती हैं, "अगर पाकिस्तान को कुछ लेना देना ही नहीं है तो फिर 2021 में सीज़फायर समझौता क्यों रिन्यू किया?"

वहाब कहती हैं, "पर्यटक आ रहे हैं इससे ये मान लेना की सब सही है यह गलत होगा."

कितना लंबा चलेगा भारत और पाकिस्तान के बीच ये तनाव? image Getty Images भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष खत्म हो गया है लेकिन तनाव जारी है

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का दौर लंबा होगा या फिर दोनों हित में समझते हुए बात करेंगे?

प्रोफ़ेसर हर्ष पंत कहते हैं, "भारत की तरफ़ से कोई जल्दबाज़ी नहीं होगी क्योंकि पिछले अनुभव ठीक नहीं हैं."

पंत कहते हैं, "बातचीत का दौर, अमन की आशा का दौर ये सब हमने देखा है. कई बार ये दिखता है पीएम मोदी की अप्रोच एंटी पाकिस्तान है लेकिन लोग भूल जाते हैं कि शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने ही नवाज़ शरीफ़ को आमंत्रित किया था."

पंत कहते हैं कि जब इस आउटरीच की पॉलिसी का कोई फल नहीं मिला तो उन्होंने पॉलिसी बदल दी.

हर्ष पंत कहते हैं, "पिछले एक दशक में भारतीय विदेश नीति में पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया और भारत एक अलग दिशा में चल पड़ा. पाकिस्तान भारत को परेशान करने के लिए इस तरह के काम करता रहेगा."

कूटनीति के सवाल पर हर्ष पंत कहते हैं, "हम यह पहले कर चुके हैं लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. भारत के पास 2014 से कई विकल्प आ चुके हैं. मुनीर साहब ने अभी अपने भाषण से टू नेशन थ्योरी को रिवाइव करने की कोशिश की है. पाकिस्तान जब अभी भी ऐसे ही देखता है तो फिर वह कैसे मैनेज करेगा?"

image BBC

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

image
Loving Newspoint? Download the app now