"किस्से तो कई संभालकर रखे हैं उसको कहानी बनाने में वक़्त लगेगा अभी, सब्र करो सब होगा बस थोड़ा वक़्त लगेगा अभी."
ये पंक्तियां शक्ति दुबे ने लिखी थीं और इसे उन्होंने यूपीएससी इंटरव्यू में सुनाया था. उन्हें खाली समय में कविताएं लिखने का शौक है.
यूपीएससी के एग्जाम में 27 साल की शक्ति दुबे ने टॉप किया है और जब से रिजल्ट आया है तब से लोगों की भीड़ उनके घर पर लगातार बनी हुई है. लेकिन कभी ऐसा भी वक़्त था जब वो इस परीक्षा की तैयारी ही छोड़ देना चाहती थीं.
ये शक्ति का पांचवां प्रयास था. आइए जानते हैं उनके बारे में
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शक्ति दुबे ने बीबीसी को बताया, "यूपीएससी में ऑल इंडिया टॉप करूंगी ऐसा सोचा नहीं था पर हो गया. पिछले साल जब कुछ नम्बर से मेरा रह गया था तो मेरे छोटे भाई आशुतोष ने कहा था तुम्हारे लिए भगवान ने रैंक वन बचाकर रखी है, तुम तैयारी करो."
"उसका कहा सच हो जाएगा इसका अंदाज़ा नहीं था."
साल 2023 में शक्ति दुबे का सिलेक्शन नहीं हो पाया तो उस वक़्त वो काफी हताश थीं.
उन्होंने बताया, "पिछले साल मेरा सिलेक्शन कुछ नम्बर से रह गया था. वो मेरा चौथा अटेम्प्ट था मैं बहुत निराश हो गयी थी. सोचा था कि 2024 का एग्जाम नहीं दूंगी."
"ऐसे में घरवालों का आत्मविश्वास काफी ज़रूरी है. मुझे घरवालों ने 2024 का एग्जाम देने के लिए काफी प्रोत्साहित किया. मुझे भी समझ आया कि जब आप यूपीएससी जैसी तैयारी करते हैं तो आपको काफी धैर्य रखना है."
पांचवें अटेम्प्ट में मिली सफलताशक्ति दुबे का यह पांचवा अटेम्प्ट था, जिसमें उन्हें सफलता मिली. शक्ति दो जुड़वां बहनों में छोटी हैं. उनका एक छोटा भाई है. ये सभी भाई बहन सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. इस बार उनकी बड़ी बहन का सिलेक्शन कुछ नम्बरों से रह गया है. उनके पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में हैं और मां एक गृहणी हैं.
शक्ति रिजल्ट निकलने वाले दिन का अनुभव साझा करते हुए मुस्कुरा रही थीं.
उन्होंने कहा, "जब लिस्ट में सबसे ऊपर अपना नाम देखा. पहली बार में तो यकीन ही नहीं हुआ. सबसे पहले पापा को फोन करके बताया. मैंने यूपीएससी में ऑल इंडिया टॉप किया है. इसे स्वीकार करने में थोड़ा समय लगा."
अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय शक्ति अपनी माँ को देती हैं.
शक्ति ने कहा, "मम्मी के लिए जो मेरे मन में है उसे कभी शब्दों में नहीं बयां कर सकते हैं. पूर्वांचल में महिलाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. वो हमेशा चाहती थीं कि मैं एक मज़बूत जगह पहुंच जाऊं. ये शायद उनकी मजबूत इच्छाशक्ति थी जिस वजह से मैं आज यहां तक पहुंची."
"माँ ने कभी हम तक कोई बात पहुंचने ही नहीं दी. वो सभी बातें अपने तक ही रखती थीं. हमारी पढ़ाई में किसी तरह का कोई डिस्टर्बेंस न हो इसका उन्होंने हमेशा ख्याल रखा. मम्मी हमेशा कहती थीं महिलाएं स्वाभाविक रूप से बहुत मजबूत होती हैं. वो हर तरह के चैलेंज को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं."
उन्होंने कहा, "उनका मानना था बेटियों का कामयाब होना, पावरफुल होना बहुत ज़रूरी है. उन्होंने हमें यहां तक पहुंचाने में बहुत त्याग किये हैं. लोगों की बहुत बातें सुनी हैं पर उन्होंने हमतक कुछ भी नहीं पहुंचने दिया."

शक्ति के मुताबिक, किसी भी कामयाबी के पीछे बहुत लोगों का हाथ होता हैं. मेरे साथ भी यही हुआ. इलाहाबाद में पली-बढ़ी शक्ति इस शहर से अपन गहरा रिश्ता मानती हैं. उन्होंने बताया उनके एग्जाम और इंटरव्यू में भी कुंभ मेले से जुड़े सवाल पूछे गये थे.
शक्ति ने कहा, "यूपीएससी की परीक्षा में कई लाख लोग बैठते हैं. लेकिन सिलेक्शन करीब हजार लोगों का ही होता है. ऐसे में धैर्य और प्लान बी हर कैंडिडेट के पास रहना चाहिए."
पढ़ाई के शुरुआती दौर में उनका डॉक्टर बनने का मन था क्योंकि उन्होंने बायोलॉजी से पढ़ाई की थी. लेकिन बाद में उनका मन सिविल की तरफ हो गया. शक्ति ने पहला और दूसरा अटेम्प्ट बिना किसी तैयारी के दिया था लेकिन तीसरे अटेम्प्ट में इन्होंने काफी मेहनत की थी. शक्ति का जब तीसरे अटेम्प्ट में कुछ नम्बरों से सिलेक्शन नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी कोचिंग में ही पढ़ाना शुरू कर दिया.
शक्ति ने कहा, "अगर आपके पास दूसरा प्लान नहीं है तो आपको असफल होने पर काफी निराशा होगी. अगर दूसरा ऑप्शन आपके पास है तो आपका मनोबल डाउन नहीं होगा. टीचिंग में मेरी रूचि है. तीसरे अटेम्प्ट में जब मेरा नहीं हुआ तो मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया था."
शक्ति दुबे का परिवार बलिया का रहने वाला है. लेकिन उनका जन्म प्रयागराज में हुआ. उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल, घूरपुर में की. बीएससी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की. जिसमें उन्हें गोल्ड मेडल मिला. एमएससी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से की. वहां भी शक्ति ने गोल्ड मेडल जीता.
स्कूल-कॉलेज में रही हैं टॉपरशक्ति की मां प्रेमा दुबे ने बीबीसी से कहा, "ये बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थी. शुरू से क्लास में टॉप करती थी. कहीं भी डिबेट में जाती थी हमेशा फर्स्ट ट्रॉफ़ी जीतकर आती थी. ड्राइंग में तो हमेशा फर्स्ट आती थी."
"दोनों बेटियां साथ में ही रहकर तैयारी करती थीं. इस बार बड़ी बेटी का रह गया है. पर हमने उसको हिम्मत दी है कि अगली बार हो जायेगा."
वो कहती हैं, "बेटा भी सिविल की तैयारी कर रहा है. दोनों बेटियों ने घर पर ही रहकर तैयारी की. इन्हें पढ़ने के लिए कभी कहना नहीं पड़ा. सब कुछ बिना कहे ही करती थीं. घर के कामों में भी मेरा हाथ बटाती थीं."
उनकी मां के मुताबिक, शक्ति ने कुछ समय डॉक्टर बनने के लिए भी तैयारी की. लेकिन बाद में वो अपने पापा को अधिकारियों के साथ रहते हुए देखती थीं, तो शायद उसके मन में आइएएस ऑफ़िसर बनने का ख्याल आया.
शक्ति दुबे की दिनचर्या के बारे में बात करते हुए उनकी प्रेमा ने कहा, "रोजाना आठ-दस घंटे पढ़ाई करती थी. योगा भी करती थी. कुछ देर प्रभु का ध्यान करती थी. समय से सोना समय से उठना सब कुछ बिना कहे ही करती थी. बस इस तरह की पढ़ाई करने के लिए थोड़ा अलग रहना पड़ता है. सोशल मीडिया से थोड़ा बहुत अपडेट रहती थी ज्यादा नहीं."
पुलिस में हैं शक्ति के पिताशक्ति के पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में हैं. वो बेटी की इतनी बड़ी उपलब्धि से बेहद खुश हैं. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "जब मैं इसकी पढ़ाई के समय इसके कॉलेज जाता था तो इसके टीचर कहते थे आपकी बेटी कुछ करके दिखायेगी. आज सच में इसने करके दिखा दिया."
आपने बेटी की पढ़ाई में कैसे सहयोग किया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "घर का माहौल पढ़ाई लिखाई के लिए एकदम शांत रहता था. हमने इसकी पढ़ाई में कभी डिस्टर्ब नहीं किया. पिछले साल इंटरव्यू तक गयी जब कुछ नम्बर से इसका रह गया तब बच्ची बहुत हताश हुई थी. हमने और पत्नी ने उस वक़्त भी इससे यही कहा था तुम हिम्मत न हारो."
12वीं तक शक्ति को हिंदी पढ़ाने वाले उनके शिक्षक अनुराग पांडेय ने बीबीसी से कहा, "शक्ति को हम लोग बचपन से जानते हैं. उसकी एक कला थी सुनना. वो सुनकर बोलना, बोलकर पढ़ना और पढ़कर लिखना उसकी आदत में शामिल था."
"वाद विवाद की प्रतियोगिता में कहीं भी भेज दो वो हमेशा मेडल जीतकर ही आती थी. ये तो पता था शक्ति कोई ऑफिसर बनेगी. शक्ति सीबीएससी बोर्ड के हाईस्कूल और इंटर दोनों एग्जाम में टॉपर रहीं. शक्ति को आज इस मुकाम पर देखना, एक शिक्षक के लिए इससे बड़ी गर्व की बात कोई नहीं हो सकती है."
शक्ति का परिवार पूर्वांचल इलाके से है. इनके घर में महिलाएं पर्दे में रहती हैं. शक्ति की मां भी घर से बाहर निकलने में मीडिया वालों से बात करने में काफी संकोच कर रही थीं.
शक्ति के पिता देवेन्द्र दुबे ने कहा, "हमारे पूर्वांचल में थोड़ा बहू-बेटियों के लिए पर्दा प्रथा तो है. मेरा शुरू से ध्येय था कि बेटा-बेटी में भेदभाव नहीं करेंगे. हमने कभी कोई भेदभाव नहीं किया. बेटी ने जब हमारे सामने सिविल की तैयारी की बात रखी तो हमने उसमें अपनी सहमति दे दी."
वहीं शक्ति ने कहा, "अगर आपका सिलेक्शन नहीं होता है, तो बहुत बारीकी से अपनी कमियों का आंकलन करें. एक बार अगर उन कमियों पर काम कर लेंगे फिर एग्जाम निकालना आसान हो जाता है. हमने बीते साल के अनुभवों से यही सीखा है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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