अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान प्रशासन के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी हाल ही में छह दिन की भारत यात्रा पर आए थे. अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद यह तालिबान सरकार के किसी मंत्री की पहली आधिकारिक भारत यात्रा रही.
उच्चस्तरीय बातचीत के बाद भारत ने ये भी घोषणा की कि वह काबुल में दूतावास फिर से खोलेगा.
मुत्तक़ी के भारत दौरे के बीच ही पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर संघर्ष हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को काफ़ी नुकसान पहुंचाने की बात कही.
इसके बाद दोनों के बीच दोहा में बातचीत हुई जिसके बाद क़तर ने कहा कि दोनों में तत्काल प्रभाव से संघर्षविराम लागू करने पर सहमति बन गई है.
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बीते हफ़्ते की इन्हीं गतिविधियों से कई सवाल पैदा हुए.
मुत्तक़ी की भारत यात्रा इतनी अहम क्यों है? पाकिस्तान में इसे कैसे देखा जा रहा है? क्या ये भारत की नीतियों में किसी बदलाव का संकेत है? और तालिबान इस यात्रा से क्या हासिल करना चाह रहा है?
'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन सभी मुद्दों पर चर्चा की.
इस चर्चा में भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू, वरिष्ठ पत्रकार निरुपमा सुब्रमण्यन और इस्लामाबाद से बीबीसी संवाददाता फ़रहत जावेद ने हिस्सा लिया.
1990 के दशक के अंत में और मौजूदा सदी के शुरुआती कुछ सालों में अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत के रिश्तों में काफ़ी खटास आ गई थी.
भारत का रवैया काफ़ी सख़्त रहा था. उस वक्त तालिबान को कट्टरपंथ के प्रतीक के रूप में देखा गया.
भारत ने तालिबान प्रशासन के साथ रिश्ते नहीं रखे और जब अमेरिकी नेतृत्व वाली फ़ौजों ने तालिबान को काबुल से बाहर किया, तब भारत ने वहां दूतावास दोबारा खोला.
साल 2021 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान प्रशासन वापस लौटा तो भारत ने फिर दूतावास बंद कर दिया.
हालांकि, बीते चार साल ठीक वैसे नहीं थे, जैसे पहले तालिबान शासन के समय थे. भारत ने अपने दरवाज़े खुले रखे और संपर्क बनाए रखा.
भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते
इन्हीं बदलते घटनाक्रमों के बीच तालिबान प्रशासन के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी की भारत यात्रा की अहमियत पर विशेषज्ञों ने बीबीसी के 'द लेंस' कार्यक्रम में अपनी राय रखी.
भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहते हैं, "यह ज़रूरी है कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध बढ़ें, ये दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद हैं."
वरिष्ठ पत्रकार निरुपमा सुब्रमण्यन कहती हैं कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बहुत पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं, जिन्हें भारत छोड़ नहीं सकता.
निरुपमा सुब्रमण्यन का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान के मौजूदा तालिबान प्रशासन के साथ संबंध कायम करना भारत का सही फ़ैसला है.
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क्या तालिबान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा तालिबान को लेकर भारत की अब तक की नीति में किसी तरीके का शिफ़्ट दिखा रही है?
इस सवाल के जवाब में भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू कहते हैं, "अब भारत को तालिबान के साथ खुले तौर पर संपर्क रखने में कोई संकोच नहीं है. जो कदम उठाया गया है कि भारत का काबुल में जो दूतावास था, उसे फिर से खोला जाएगा, ये अच्छा कदम है. तालिबान ऐसा बहुत दिनों से चाहता था. इसके ज़रिए भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते और मजबूत होंगे."
लेकिन संबंध सुधारने या फिर से संपर्क बनाने की भारत की कोशिश को लेकर कुछ हलकों में आलोचना भी हुई है. जैसे, महिलाओं और मानवाधिकार के प्रति तालिबान प्रशासन कैसा रवैया रखता है.
इन मुद्दों पर भारत ऐतिहासिक रूप से विरोध भी करता रहा है. तो क्या भारत के रवैये में कोई विरोधाभास दिखता है?
इस सवाल पर विवेक काटजू कहते हैं कि ऐसे कई देश हैं, जिनका रवैया जेंडर मुद्दों और मानवाधिकार के मुद्दों पर भारत की संवैधानिक मान्यता के विपरीत है.
काटजू कहते हैं कि उनके मुताबिक़ दो देशों के रिश्तों के लिए मानवाधिकार को मापदंड बनाना उचित नहीं है.
वह कहते हैं, "ये ज़रूर है कि तालिबान की जो मान्यताएं हैं उससे भारत बहुत अलग है, लेकिन अलग दृष्टिकोण के आधार पर दरवाज़े बंद करना संभव नहीं है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में भारत के बड़े हित हैं और इन हितों में सामरिक हित भी हैं, जिनकी सुरक्षा करना ज़रूरी है."
अफ़ग़ानिस्तान से जुड़े भारत के हित के बारे में निरुपमा सुब्रमण्यन कहती हैं, "भारत के हित साफ़ हैं, एक तो सुरक्षा से जुड़ा हित है. दूसरा, भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान आगे के इलाक़ों तक पहुंच का ज़रिया भी है."
वह कहती हैं, "इसमें एक मुश्किल यह है कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच जो ज़मीनी रास्ता है, उसे पाकिस्तान बंद कर देता है. उससे परेशानी होती है क्योंकि सीधे तौर पर ज़मीनी संपर्क नहीं रह जाता."
निरुपमा सुब्रमण्यन कहती हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की अहमियत इतनी ज़्यादा है कि भारत उस तक पहुंच सुनिश्चित करना चाहता है.

निरुपमा सुब्रमण्यन का मानना है कि मुत्तक़ी का भारत दौरा जितना भारत के लिए अहम था, उससे ज़्यादा ये तालिबान के लिए महत्वपूर्ण था.
वह कहती हैं कि तालिबान के लिए भारत जैसे बढ़ती वैश्विक शक्ति के साथ जुड़ना अपनी अंतरराष्ट्रीय वैधता हासिल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. दूसरा वह इस दौरे को तालिबान की ओर से पाकिस्तान के लिए एक संकेत मानती हैं.
विवेक काटजू और निरुपमा सुब्रमण्यन दोनों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान और भारत के संबंध इसलिए भी ज़रूरी है कि ताकि पाकिस्तान ये न समझे कि अफ़ग़ानिस्तान की विदेश नीति क्या होगी, ये वो तय करेगा.
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इस्लामाबाद से बीबीसी संवाददाता फ़रहत जावेद कहती हैं कि पाकिस्तान में मुत्तक़ी के भारत दौरे को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं है.
उनके मुताबिक़ इसकी एक बहुत बड़ी वजह यह भी है कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध पिछले कुछ समय से काफ़ी ख़राब चल रहे थे.
फ़रहत जावेद कहती हैं, "साल 2021 में जब अफ़ग़ान तालिबान ने काबुल का कंट्रोल लिया था, तब पाकिस्तान में बड़ा जश्न था. पाकिस्तानी राजनेता जश्न मना रहे थे, लेकिन पाकिस्तान को जैसी उम्मीद थी वैसा नहीं हुआ."
उसके बाद के अगले चार साल में पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान की सरकार के बीच संबंध ख़राब होते चले गए.
पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की सरकार पर यह आरोप लगाता रहा है कि वह तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का साथ दे रही है.
फ़रहत जावेद कहती हैं, "पाकिस्तान में कई आतंकी हमलों में टीटीपी की संलिप्तता पाई गई है. पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान की सरकार से ये मांग करता रहा है कि वह टीटीपी को ख़ात्म करे और उसके नेताओं को पाकिस्तान के हवाले किया जाए."
वहीं अफ़ग़ानिस्तान की सरकार पाकिस्तान के आरोपों को नकारती रही है.
फ़रहत बताती हैं कि पिछले कुछ महीनों में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था.
वह कहती हैं, "हालात यहां तक पहुंच गए थे कि तालिबान के विदेश मंत्री के भारत दौरे से दो दिन पहले इस्लामाबाद में एक रीजनल कॉन्फ़्रेंस हुई थी, जिसमें ऐसे लोग भी मौजूद थे जो अफ़ग़ानिस्तान की पिछली हुकूमतों के दौरान उनके समर्थक थे."
फ़रहत जावेद कहती हैं कि तालिबान और भारत एक-दूसरे के विरोधी के तौर पर देखे गए हैं और पाकिस्तान इसकी अपेक्षा नहीं कर रहा था कि दोनों एक-दूसरे के नज़दीक आएंगे.
उनके मुताबिक़ पाकिस्तान में मुत्तक़ी के भारत दौरे को लेकर गुस्सा है और चिंता भी है कि यह संबंध आगे और कितना बढ़ेंगे.
अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष
हाल के दिनों में जब अमीर ख़ान मुत्तक़ी भारत में मौजूद थे, उसी दौरान अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष हुआ और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को नुक़सान पहुंचाने का दावा किया.
इस्लामाबाद से बीबीसी संवाददाता फ़रहत जावेद कहती हैं, "ये सब उस दौरान हुआ, जब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बातचीत चल रही थी. उसमें कोई बहुत कामयाबी नहीं थी लेकिन बातचीत का एक दरवाज़ा खुला था. अब ऐसा लगता है कि वो दरवाज़ा बंद हो गया है."
वह कहती हैं, "यहां सुरक्षा मामलों के बहुत से विशेषज्ञों और विश्लेषकों का कहना है कि ये एक ग़ैर-ज़रूरी संघर्ष था, जो पाकिस्तान की तरफ़ से भी शुरू किया गया, काबुल के अंदर जाकर अफ़ग़ान क्षेत्र पर हमला किया गया. ये वे आरोप हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार भी लगाती है कि पाकिस्तान की तरफ़ से हमला होता है."
फ़रहत जावेद कहती हैं कि दोनों ही तरफ़ ग़ुस्सा है. हालांकि, वह ये भी कहती हैं कि पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर इस समय इतना स्थिर नहीं है कि वो अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपनी सीमा पर और भारत के साथ अपनी सीमा पर- दोनों जगह तनाव झेल सके.
फ़रहत जावेद के मुताबिक़ यही वजह है कि पाकिस्तान की सरकार में भी बहुत से लोग चाहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ बातचीत के ज़रिए मसला हल किया जाए.
पाकिस्तान क्या चाहता है?विवेक काटजू कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान में किसी तरह की हुकूमत रही हो, पाकिस्तान हमेशा चाहता है कि उनकी विदेश नीति पर उसका कुछ असर रहे, ख़ासकर भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान की नीति पर."
"मुझे लगता है कि 2021 में पाकिस्तान में एक यह भावना थी कि उन्हीं की वजह से तालिबान को सफलता मिली है कि उन्होंने अमेरिका जैसी महाशक्ति को शिकस्त दी और अफ़ग़ानिस्तान में फिर से अपना नियंत्रण स्थापित किया."
हालांकि काटजू कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में जो भी हुकूमत रही है, उसने हमेशा अपनी नीतियों में पाकिस्तान के हस्तक्षेप को नामंज़ूर किया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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