ग़ज़ा में युद्ध लगातार जारी है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि इसराइल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ने की स्थिति की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है.
क्या इसराइल 'दक्षिण अफ़्रीका' के उस दौर की ओर बढ़ रहा है, जब वहां रंगभेद था?
उस दौर में राजनीतिक दबाव के साथ ही आर्थिक, खेल और संस्कृति के मंचों पर दक्षिण अफ़्रीका के बायकॉट ने उसे इस नीति को छोड़ने को मजबूर किया था.
या फिर इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार अपने देश के अंतरराष्ट्रीय क़द को स्थायी नुक़सान पहुँचाए बिना इस कूटनीतिक तूफ़ान को झेल सकती है ताकि वो ग़ज़ा और क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में अपने लक्ष्य पूरे करने के लिए आज़ाद रहे.
दो पूर्व प्रधानमंत्री एहुद बराक और एहुद ओल्मर्ट, पहले ही ये आरोप लगा चुके हैं कि नेतन्याहू इसराइल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अछूत बनाने की ओर ले जा रहे हैं.
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की ओर से जारी वारंट के चलते नेतन्याहू अब गिरफ़्तारी के डर के बिना जिन देशों की यात्रा कर सकते हैं, उनकी संख्या अब काफ़ी घट गई है.
संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन, फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और कनाडा समेत कई देशों ने कहा है कि वे अगले हफ़्ते फ़लस्तीन को एक देश के तौर पर मान्यता देने की योजना बना रहे हैं.
खाड़ी देश क़तर में, पिछले मंगलवार को हमास नेताओं पर हुए इसराइली हमले से नाराज़ होकर दोहा में जुटे और उन्होंने इस पर चर्चा की.
इनमें से कुछ देश इसराइल से संबंध रखने वाले देशों से अपील कर रहे हैं कि वो इस रिश्ते पर फिर विचार करें.
लेकिन गर्मियों में ग़ज़ा से भुखमारी की तस्वीरें सामने आने, और इसराइली सेना के ग़ज़ा सिटी पर हमले की तैयारी के बीच, अब ज़्यादा से ज़्यादा यूरोपीय सरकारें केवल बयानों से आगे बढ़कर अपनी नाख़ुशी जता रही हैं.
बेल्जियम ने इसराइल के ख़िलाफ़ उठाया ये क़दमइस महीने की शुरुआत में बेल्जियम ने कई प्रतिबंधों की घोषणा की.
इनमें वेस्ट बैंक की अवैध यहूदी बस्तियों से आयात पर रोक, इसराइली कंपनियों के साथ सरकारी ख़रीद नीति की समीक्षा और बस्तियों में रहने वाले बेल्जियम के नागरिकों को कॉन्सुलर मदद पर रोक शामिल थी.
इसके अलावा बेल्जियम ने इसराइल के दो कट्टरपंथी मंत्रियों इतामार बेन-गवीर और बेज़लेल स्मोतरीच के साथ वेस्ट बैंक में फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वाले यहूदियों को अवांछित घोषित कर दिया है.
ब्रिटेन और फ़्रांस समेत कुछ देश पहले ही इस तरह के क़दम उठा चुके थे.
लेकिन पिछले साल बाइडन सरकार की ओर से वेस्ट बैंक में बसे और हिंसा करने वाले यहूदियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में लौटने के पहले ही दिन हटा दिया था.
बेल्जियम के क़दम के एक हफ़्ते बाद, स्पेन ने अपने क़दमों की घोषणा की. इसमें मौजूदा वास्तविक हथियार प्रतिबंध को क़ानून का रूप दे दिया गया.
साथ ही आंशिक आयात पाबंदी, ग़ज़ा में नरसंहार या युद्ध अपराधों में शामिल किसी भी व्यक्ति को स्पेन की सीमा में प्रवेश पर रोक जैसे क़दम शामिल थे.
इसराइल के लिए हथियार लेकर जाने वाले जहाज़ों और विमानों को स्पेन के बंदरगाहों और हवाई क्षेत्र में आने से रोक जैसे क़दम भी उठाए गए थे.
इसराइल के आक्रामक विदेश मंत्री गिडोन सार ने स्पेन पर यहूदी-विरोधी नीतियाँ आगे बढ़ाने का आरोप लगाया और कहा कि हथियार व्यापार पर प्रतिबंध से इसराइल से ज़्यादा स्पेन को नुक़सान होगा.
इसराइल के लिए चिंताजनक संकेतलेकिन इसराइल के लिए और भी चिंताजनक संकेत सामने आ रहे हैं.
अगस्त में नॉर्वे के विशाल 2 ट्रिलियन डॉलर के सॉवरेन वेल्थ फंड ने घोषणा की कि वह इसराइल में लिस्टेड कंपनियों में विनिवेश करना शुरू करेगा.
इस महीने के मध्य तक 23 कंपनियाँ हटा दी गईं और वित्त मंत्री जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि आगे और भी कंपनियों को हटाया जा सकता है.
इसी बीच, इसराइल के सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर यूरोपियन यूनियन दक्षिणपंथी मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाने और इसराइल के साथ अपने समझौते के कुछ व्यापारिक पहलुओं को आंशिक तौर पर निलंबित करने की योजना बना रहा है.
10 सितंबर को अपने 'स्टेट ऑफ द यूनियन' भाषण में यूरोपियन यूनियन की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि ग़ज़ा की घटनाओं ने "दुनिया के ज़मीर को झकझोर दिया है".
इसके अगले ही दिन 314 पूर्व यूरोपीय राजनयिकों और अधिकारियों ने वॉन डेर लेयेन और यूरोपियन यूनियन की विदेश नीति प्रमुख काया कलास को चिट्ठी लिखकर कड़े क़दम उठाने की अपील की, जिनमें एसोसिएशन एग्रीमेंट को पूरी तरह निलंबित करना भी शामिल था.
1960 के दशक से लेकर 1990 में रंगभेद ख़त्म होने तक दक्षिण अफ़्रीका पर लगाए गए प्रतिबंधों की एक अहम ख़ासियत सांस्कृतिक और खेल आयोजनों का बायकॉट था.
ऐसे संकेत अब इसराइल को लेकर भी दिखने लगे हैं.
यूरोविज़न सॉन्ग कॉन्टेस्ट इस संदर्भ में भले ज़्यादा अहम न लगे, लेकिन इसराइल का इस प्रतियोगिता से गहरा रिश्ता रहा है.
1973 से लेकर अब तक वो इसे चार बार जीत चुका है. इसराइल के लिए इसमें हिस्सा लेना यहूदियों के राष्ट्र को अंतरराष्ट्रीय परिवार में स्वीकार किए जाने का प्रतीक है.
लेकिन आयरलैंड, स्पेन, नीदरलैंड और स्लोवेनिया ने कहा या संकेत दिया है कि अगर 2026 में इसराइल को इसमें हिस्सा लेने दिया गया, तो वो इस प्रतियोगिता से हट जाएंगे.
इस पर अंतिम फ़ैसला दिसंबर में होने की उम्मीद है.
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हॉलीवुड में एक पत्र में इसराइली प्रोडक्शन कंपनियों, फेस्टिवल और ब्रॉडकास्टर्स के बहिष्कार की अपील की गई थी.
इन्हें फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ 'जनसंहार और रंगभेद में शामिल' बताया गया है.
बहिष्कार की अपील वाली इस चिट्ठी ने सिर्फ़ एक हफ़्ते में 4,000 से ज़्यादा हस्ताक्षर जुटा लिए हैं.
इनमें एमा स्टोन और जेवियर बार्डेम जैसे मशहूर नाम भी शामिल हैं.
इसराइली फ़िल्म और टीवी प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के सीईओ ज़्विका गॉटलिब ने इस याचिका को "पूरी तरह गुमराह करने वाला" कहा है.
उन्होंने कहा, "डाइवर्सिटी वाली कहानियों को आवाज़ देने और संवाद को बढ़ावा देने वाले हम जैसे क्रिएटर्स पर निशाना साधकर इन दस्तख़त करने वालों ने अपने ही बातों को कमज़ोर किया और हमें चुप कराने की कोशिश की है."
खेलों की दुनिया में भी विरोध दिखा. वुएल्ता दे एस्पाना साइकिलिंग रेस को बार-बार प्रदर्शनकारियों ने बाधित किया.
ये इसराइल-प्रीमियर टीम की मौजूदगी का विरोध कर रहे थे. इसके चलते शनिवार को प्रतियोगिता का समय से पहले और अव्यवस्थित अंत करना पड़ा और पोडियम समारोह रद्द करना पड़ा.
स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज़ ने इन प्रदर्शनों को 'गौरवान्वित' करने वाला बताया. लेकिन विपक्षी नेताओं ने कहा कि सरकार के क़दमों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी हुई है.
इसी तरह स्पेन में सात इसराइली शतरंज खिलाड़ियों ने प्रतियोगिता से नाम वापस ले लिया क्योंकि उन्हें कहा गया कि वे अपने झंडे के नीचे नहीं खेल सकते.
इस 'डिप्लोमैटिक सूनामी' (मीडिया ने इसे ये नाम दिया है) का इसराइली सरकार विरोध करती रही है.
नेतन्याहू ने स्पेन पर "खुलेआम जनसंहार की धमकी" का आरोप लगाया.
ये आरोप स्पेन के प्रधानमंत्री के उस बयान के बाद लगाया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका देश जिसके पास न तो परमाणु हथियार हैं, न विमानवाहक पोत और न बड़े तेल भंडार, अपने दम पर ग़ज़ा में इसराइल के हमले को रोकने में सक्षम नहीं है.
बेल्जियम की ओर से प्रतिबंधों की घोषणा के बाद, गिडोन सार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "यह दुखद है कि जब इसराइल अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे ख़तरे से लड़ रहा है, जो ख़ुद यूरोप के लिए बेहद अहम है, उस समय भी कुछ यहूदी विरोधी लोग अपनी दीवानगी छोड़ नहीं पा रहे हैं."
कूटनीति की कमज़ोरियाँ?लेकिन जो लोग विदेश में इसराइल की नुमाइंदगी कर चुके हैं, उनमें गहरी चिंता है.
2017 से 2021 तक जर्मनी में इसराइल के राजदूत रहे जेरमी इस्साखारॉफ़ ने मुझे बताया कि उन्हें याद नहीं कि इसराइल की अंतरराष्ट्रीय स्थिति कभी इतनी "कमज़ोर" रही है.
उन्होंने कहा कि कई क़दम "अफ़सोसजनक" हैं क्योंकि उन्हें अनिवार्य रूप से सभी इसराइलियों को निशाना बनाने के रूप में देखा जा रहा है.
उन्होंने कहा, "सरकार की नीतियों को अलग करके निशाना बनाने के बजाय, यह बहुत से इसराइलियों को दूर धकेल रहा है."
उनका मानना है कि कुछ क़दम, जैसे फ़लस्तीन को देश के रूप में मान्यता देना, उल्टा असर डाल सकते हैं क्योंकि यह "स्मोतरीच और बेन गवीर जैसे लोगों को और मज़बूती दे देगा, और यहाँ तक कि उनके वेस्ट बैंक को मिलाने के तर्क को भी मज़बूत करता है."
अपनी आशंकाओं के बावजूद, पूर्व राजदूत नहीं मानते कि इसराइल का कूटनीतिक अलगाव ऐसी चीज़ है जिसे बदला ना जा सके.
उन्होंने कहा, "हम अभी दक्षिण अफ़्रीका वाले दौर में नहीं हैं. लेकिन शायद उस दौर की भूमिका वाले दौर में हैं."
दूसरे लोगों का मानना है कि इसराइल को अछूत देश बनने से रोकने के लिए और बदलाव ज़रूरी है.
एक अन्य पूर्व राजनयिक इलान बरुख ने मुझसे कहा, "हमें फिर से दुनिया में अपनी जगह बनानी होगी. हमें अपनी समझदारी के दौर में लौटना होगा."
बरुख, रंगभेद ख़त्म होने के 10 साल बाद दक्षिण अफ़्रीका में इसराइल के राजदूत रहे थे. उन्होंने 2011 में राजनयिक सेवा से इस्तीफ़ा दे दिया था.
उनका कहना था कि अब वो इसराइल के कब्ज़े का बचाव नहीं कर सकते. रिटायरमेंट के बाद से ही वे सरकार के कटु आलोचक और दो-राष्ट्र समाधान के समर्थक रहे हैं.
उनका मानना है कि हाल के प्रतिबंध ज़रूरी हैं. उन्होंने कहा, "यही तरीक़ा था, जिससे दक्षिण अफ़्रीका को झुकाया जा सका था."
इसराइल को अमेरिका का मज़बूत समर्थन
बरुख ने कहा, "मैं तो कहूँगा कि इसराइल पर दबाव बनाने के यूरोपीय देशों के पास जितने भी तरीक़े हैं, उनका इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसे तरीक़े का स्वागत होना चाहिए."
उन्होंने कहा, "ज़रूरत पड़ने पर इनमें वीज़ा नियमों में बदलाव और सांस्कृतिक बहिष्कार भी शामिल होना चाहिए. मैं उस तकलीफ़ के लिए तैयार हूँ."
लेकिन नाराज़गी और दबाव की तमाम बातें होने के बावजूद, कुछ अनुभवी पर्यवेक्षकों को संदेह है कि इसराइल किसी बड़े कूटनीतिक संकट के मुहाने पर है.
पूर्व इसराइली शांति वार्ताकार डैनियल लेवी ने कहा, "स्पेन जैसे क़दम को तैयार देश अब भी अपवाद हैं."
उन्होंने कहा कि यूरोपियन यूनियन के भीतर सामूहिक कार्रवाई की कोशिशें पर्याप्त समर्थन नहीं जुटा पाएंगी.
ऐसे क़दमों में एसोसिएशन एग्रीमेंट के प्रावधानों को रद्द करना या फिर जैसा सुझाव दिया जा रहा है.
साथ ही इसराइल को यूरोपियन यूनियन की होराइजन रिसर्च और इनोवेशन प्रोग्राम से बाहर रखने जैसे क़दम भी शामिल हैं. क्योंकि जर्मनी, इटली और हंगरी जैसे सदस्य देश ऐसे क़दमों का विरोध कर रहे हैं.
इसराइल को अब भी अमेरिका का मज़बूत समर्थन हासिल है. विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने आधिकारिक दौरे पर निकलते समय कहा कि अमेरिका के "इसराइल के साथ संबंध मज़बूत बने रहेंगे."
लेवी अब भी मानते हैं कि इसराइल का अंतरराष्ट्रीय अलगाव अटल है. ट्रंप प्रशासन का निरंतर समर्थन होने की वजह से हालात अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचे हैं कि ग़ज़ा में घटनाओं की दिशा बदल सके.
लेवी ने कहा, "नेतन्याहू के पास अब आगे बढ़ने की गुंजाइश ख़त्म होती जा रही है. लेकिन हम अभी सड़क के आख़िरी छोर पर नहीं पहुँचे हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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