मेरा बेटा जब हमारी बिल्ली के बच्चे को देखता है, तो उसका चेहरा खिल उठता है. वह उसे कसकर गले लगा लेता है.
हम भले ही उसे ऐसा न करने के लिए बार-बार मना करें, लेकिन हर बार उसका मन उसे देखते ही जकड़ने को करता है.
यह कोई शरारत नहीं है और न ही बिल्ली के बच्चे को चोट पहुँचाने का इरादा है. यह उसके प्यार का इज़हार करने का तरीका है.
प्यारी चीज़ों को कसकर गले लगाने की यह भावना सभी उम्र के लोगों में देखी जाती है.
मेरे साथ काम करने वाले 30 और 40 साल की उम्र के लोग भी इस बात से सहमत हैं. एक ने कहा, "जब भी मैं किसी बच्चे के गुलाबी, मोटे गाल देखता हूं, तो मन करता है उन्हें छूकर देखूं."
हाल ही में पिता बनने वाले एक सहकर्मी ने बताया कि उन्हें अपने बेटे को कसकर गले लगाने और उसके मोटे पैरों को 'काटने' का मन करता है.
मनोवैज्ञानिक इसे 'क्यूट एग्रेसन' कहते हैं. यह हमारे दिमाग के अत्यधिक प्यारेपन से निपटने के तरीक़े की दिलचस्प झलक मानी जाती है.
'क्यूट एग्रेसन' क्या है?
यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में सामाजिक मनोवैज्ञानिक लिसा ए. विलियम्स कहती हैं, "क्यूट एग्रेसन एक ऐसा तंत्र है, जिसके ज़रिए हम उन सकारात्मक भावनाओं के उफ़ान को संभालते हैं. हम इसे तब अनुभव करते हैं जब हम किसी अत्यधिक प्यारी चीज़ को देखते हैं."
इन तीव्र भावनाओं और एहसासों के पीछे कोई नुकसान पहुँचाने का इरादा नहीं होता है. अत्यधिक उमड़ती खुशी और स्नेह की भावनाओं को नियंत्रित और संतुलित करने का यह दिमाग का एक तरीका है.
यह भावनाएं अक्सर उस समय उमड़ती हैं जब हम किसी छोटे बच्चे, बिल्ली के बच्चे या बड़ी-बड़ी आंखों वाले कुत्ते के बच्चे को देखते हैं.
लिसा विलियम्स कहती हैं, "यह भावना इस रूप में सामने आती है जिसमें हम किसी प्यारी चीज़ को दबाना या कसकर पकड़ना चाहते हैं. लेकिन इसके पीछे नुकसान पहुँचाने का इरादा नहीं होता है."
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अपनी बहुत प्यारी चीज़ों को देखकर हिंसक लगने वाली हरकतें एक विरोधाभासी भावनात्मक प्रतिक्रिया हैं.
मनोवैज्ञानिक इसे 'डाइमॉर्फ़स इमोशनल एक्सप्रेशन' कहते हैं, यानी यह तब होता है जब हमारा शारीरिक व्यवहार हमारी मानसिक भावना से मेल नहीं खाता.
विशेषज्ञों के अनुसार, यह बात भले ही अजीब लगे लेकिन यह पूरी तरह सामान्य है.
अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एहसास सभी उम्र और संस्कृतियों के लोगों में देखा गया है.
प्यारी चीज को देखकर "क्यूट एग्रेसन" महसूस क्यों करते हैं?
जब भी हम कोई प्यारी और मनमोहक चीज़ देखते हैं तो दिमाग से डोपामाइन 'फील-गुड' हार्मोन निकलता है. यही हार्मोन स्वादिष्ट भोजन, प्रेम या फिर किसी उपलब्धि पर भी सक्रिय होता है.
कभी-कभी अच्छी भावनाएं इतनी ज़्यादा हो जाती हैं कि दिमाग के लिए इन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है. तब दिमाग का एक हिस्सा एमीग्डाला सक्रिय होता है और तुरंत भावनाओं पर रोक लगा देता है. इसका मतलब है कि आप अपनी भावनाओं के अनुसार तुरंत कुछ नहीं कर पाते.
श्रीलंका की एक यूनिवर्सिटी में वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. कंथि हेटिगोडा कहती हैं, "जब दिमाग में रिवॉर्ड सिस्टम सक्रिय होता है, तो हमें किसी चीज़ को कसकर पकड़ने, दबाने, चबाने या मसलने की इच्छा होती है. लेकिन साथ ही, इमोशन रेगुलेशन क्षेत्र भी सक्रिय हो जाता है, जिससे हम अपने भावों पर नियंत्रण कर पाते हैं. यहां यही हो रहा है."
यही वह प्रक्रिया है जो 'क्यूट एग्रेसन' के अहसास को जन्म देती है.
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रिसर्चर बताते हैं कि 'क्यूट एग्रेसन' तीव्र भावनाओं और एहसासों को व्यक्त करने और उमड़ती खुशी तथा अच्छी भावनाओं को सुरक्षित तरीके से नियंत्रित करने का एक स्वस्थ तरीका है.
यह दर्शाता है कि दिमाग एक साथ कैसे विरोधाभासी भावनाओं को संभाल सकता है. मनोवैज्ञानिक इसे एक सामना करने की प्रक्रिया मानते हैं, जो हमें तीव्र सकारात्मक भावनाओं को सुरक्षित और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीके से संभालने की अनुमति देती है.
जब लोग सामान्य रूप से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, तो समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
मनोचिकित्सक डॉ. कपिला रनासिंघे बताते हैं कि किसी भी तीव्र इच्छा को नियंत्रित करने में विफलता, चाहे वह प्यारी चीज़, क्रोध या लालसा से उत्पन्न हुई हो, अनुचित या सामाजिक रूप से अस्वीकार्य व्यवहार को जन्म दे सकती है.
"किसी तीव्र इच्छा के अनुभव होते ही उस पर जवाब देना ख़तरनाक है. हमें इसे नियंत्रित करना सीखना होगा."
क्या हर कोई क्यूट एग्रेसन महसूस करता है?मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, अधिकांश लोग (करीब 50 से 60 प्रतिशत) क्यूट एग्रेसन का अनुभव करते हैं, लेकिन कई लोगों को यह अनुभव नहीं होता.
इसका मतलब यह नहीं है कि उनके साथ कोई समस्या है.
शोधकर्ता अभी यह नहीं जानते कि जिन लोगों को क्यूट एग्रेसन नहीं होता, क्या उनके भावनात्मक अनुभव उतने तीव्र नहीं होते या फिर उनके पास इसे व्यक्त करने के अन्य तरीके होते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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