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राजस्थान का रहस्यमय शिव मंदिर: भगवान विष्णु ने ग्वाले का वेश धरकर जहां स्वयं की थी शिवलिंग की स्थापना, जाने पौराणिक कथा

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राजस्थान के सिरोही जिले के मंदार कस्बे में हरियाली से आच्छादित पहाड़ी पर स्थित लीलाधारी महादेव मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।यहाँ पहाड़ी की चोटी पर 84 फीट ऊँचा स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। ऊँचाई अधिक होने के कारण, पूरे शिवलिंग का अब तक केवल दो बार ही अभिषेक किया गया है। केवल इसके निचले भाग की ही पूजा की जाती है।ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग सहित पूरे पर्वत की स्थापना भगवान विष्णु ने स्वयं एक ग्वाले के रूप में आकर अपने हाथों से की थी। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। ऐसे में यह पूरा पर्वत पवित्र माना जाता है।

भगवान विष्णु ग्वाले के वेश में आए थे

कथा के अनुसार, लंकापति रावण महादेव का परम भक्त था। उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। रावण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उससे वरदान माँगा। जब रावण कैलाश पर्वत पर स्थित मंद शिखर को ले जाकर लंका में स्थापित करना चाहता था, तब शिवजी ने कहा - तथास्तु। जब रावण मंद शिखर को अपने हाथों में लेकर चलने लगा, तो देवताओं में खलबली मच गई। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने इंद्र के पास जाने की सलाह दी। देवताओं के अनुरोध पर इंद्र ने रावण को मूत्र त्याग के लिए प्रेरित किया।

उस समय भगवान विष्णु मंदिर स्थल पर ग्वाले के वेश में गायें चरा रहे थे। रावण ने जब यह देखा, तो उसने ग्वाले से कहा, मैं तुम्हें अपार शक्ति देता हूँ। इस पर्वत को धारण करो। यह कहकर उसने मंद शिखर ग्वाले को सौंप दिया। जब रावण थोड़ा आगे गया और मूत्र त्याग कर लौटा, तो भगवान उसी स्थान पर मंद शिखर की स्थापना करके चले गए थे। इसके बाद रावण को वहाँ से निराश होकर लौटना पड़ा। कहा जाता है कि मंदार का नाम भी मंद शिखर से अपभ्रंश होकर मंद, मदार और मदार होकर मंदार हो गया है।

आमलकी ग्यारस पर लगता है मेला

राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र समेत पूरे भारत से श्रद्धालु यहाँ आते हैं। श्रावण मास में यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है। महाशिवरात्रि के बाद फाल्गुन शुक्ल ग्यारस यानी आमलकी ग्यारस को लीलाधारी महादेव का मेला लगता है, जिसमें हज़ारों लोग पहुँचते हैं। दर्शन और पूजा के बाद लोग चंग की थाप पर जमकर नाचते भी हैं।

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